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मानवता को शर्मसार क्यों करते हो?
ईश्वर ने जो मानुष तन दिया तो,
जंगली भेड़िए क्यों बनते हो?
उस बारह बरस की बच्ची पे
क्यों ? नहीं तुमको तरस आया?
क्यों ? उस मासूम सी नाजुक,
अधखिली कली को तुमने यूं मसल डाला?
उस कोमल मन की चीत्कार से
मन मानवता का रोया है..!
कहीं की धरती कांप गई,
कहीं का गगन भी रोया है..!
काश! महाकाल के कोप से तुम थोड़ा तो डर जाते,
काश! बेशर्म कदम तुम्हारे खुद ही पीछे हट जाते,
कन्या रूपी देवी का भक्षण करके,
क्यों ? कन्या पूजन का नाटक रचते हो?
मानवता को शर्मसार क्यों करते हो?

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