बोले मुझसे ये मेरा अंतर्मन, कर वही जो कहे तेरा मन
तनिक भी ना सोच कोई क्या कहता है,
बस कर वही जो तेरा मन कहता है ,
बहुत मुश्किल होता है अपनी शर्तों पर जीना
कभी पद से ,कभी ओहदे से पीछे धकेलता है ये जमाना
पर तू बन के जिद्दी अपने हुनर से खुद को चमकाना
सुख - दुख से किसी के, ज़माने को क्या फर्क पड़ता है
ये तो तमाशा देखता है, और फिर हंसता है
अखरने दे, अगर ज़माने को अखरता है
बेफिक्र हंस, खुल के जी जिंदगी का हर पल,
कल किसने देखा है, अपने आज को संवार कर,
दूसरों के साथ - साथ खुद से भी तो प्यार कर
कर यूँ आत्मचिंतन, कि ये मन तेरा बन जाए चंदन
मन में कर यूँ ज्योत प्रबल, स्वयं को बना इतना सबल
स्वाभिमान से, अपने "आत्मज्ञान" से जीत लेगा तू निश्चित ही ये "जग"