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अपने सम्मान को सर्वोपरि रखिए नहीं तो..आंखें भीगी रहेंगी और मन अशांत...।
कभी-कभी कुछ दृढ़ निर्णय लेने ही पड़ते हैं जब प्रहार आपके सम्मान पर हो तो ठेस मन को पहुँचती है, तब जीवन में दो रास्ते दिखते हैं या तो स्वयं टूट जाओ या स्वाभिमान से वहाँ से किनारा कर लो
जिन को आपकी जरूरत नहीं उनको अपनी मौजूदगी का एहसास भी ना होने दो
जीने दो उनको आपके बिन ही, जो आपके बिन खुद को बेहतर समझते हैं.....।
वो कोई भी रिश्ता जिस में आदर और सम्मान ना हो कभी प्रसन्न्ता से जीने नहीं देगा... अतः उस रिश्ते को शून्य कर देना ही बेहतर है....हम अक्सर सोचते हैं कि चलो जाने दो ...... फिर क्या होता है ये प्रक्रिया बार बार होने लगती है
जिन रिश्तों में सम्मान की रेखा ना हो... वहाँ लक्ष्मण रेखा खींच देना ही बेहतर होता है।
मन को शांति को तभी मिलेगी नहीं तो मन और मष्तिष्क में तपन रहेगी, थकन रहेगी।
सीधी सी बात है कि स्वाभिमान को जाने ना दो और अभिमान को आने ना दो...।

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