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कभी-कभी आप किसी के लिए उतना जरूरी भी नहीं होते जितना आप खुद को मान लेते हैं

वास्तव में गलती हमारी ही होती है हम अपने तरफ से सामने वाले को जितना जरूरी मानते हैं हम अपने मन में उनके तरफ से भी खुद को उतना ही जरूरी मान लेते हैं जो कि प्रायः होता ही नहीं है क्योंकि सामने वाले की सोच भला हमारे जैसी कैसे हो सकती है?

इसका कोई माप तो हो नही सकता कि हम इस लेवल तक आपको जरूरी समझते हैं आप भी हमको उतने ही लेवल तक जरूरी समझो...हर व्यक्ति के सोचने की अपनी हदें होती हैं

सच ही कहा है किसी ने कि कोई किसी को चोट नहीं पहुंचाता बल्कि हमारे मन की अपेक्षाएं ही हमें चोट पहुंचाती हैं...।

मेरी एक कविता जो कुछ समय पहले मैंने लिखी थी "अपेक्षाएं" यहां प्रेषित कर रही हूं

अपेक्षाएं ही रुलाती हैं
अपेक्षाएं ही हंसाती हैं
कोई किसी को धोखा नहीं देता
उम्मीदें दें जाती हैं
किसी का साथ देना या पाना अच्छी बात है
पर किसी पर निर्भर हो जाने से ही
अक्सर चोट पहुंच जाती है
अपेक्षाएं ही रुलाती हैं
अपेक्षाएं ही हंसाती हैं
ये दिल बड़ा नादान होता है
मीठी बातों पे मेहरबान होता है
सच्ची बातों की कड़वाहट में
छुपी मिठास से अंजान होता है
मीठे झूठ की दगाबाजी
नासमझ दिल को दुखा जाती है
अपेक्षाएं ही रुलाती हैं
अपेक्षाएं ही हंसाती हैं।।

Never expect just appreciate everything & it's worth.. 

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