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बचपन में मां पापा के रूप में
हां मैंने ईश्वर को देखा
मेरी खुशी को उनकी आंखों में देखा
मेरी तकलीफ को उनके माथे पे देखा
संग अपने हंसते रोते देखा
हां मैंने ईश्वर को देखा
कभी कांधे पे बिठाया, कभी बाहों में झुलाया
मेरे नखरों को उन्होंने जैसे पलखों पे सजाया
मेरे को लाड़ लड़ाते देखा
हां मैंने ईश्वर को देखा
कभी मिन्नतों के धागों में, कभी पूजा औ प्रार्थनायों में,
क्या सही है क्या गलत?, क्या भला है क्या बुरा?
संस्कारों को सिखाते देखा
हां मैंने ईश्वर को देखा
सींच के मुझको लाड़ दुलार से
ब्याह के दिन खुशियों के बीच भी
आंसू से आंखे भिगाते देखा
हां मैंने ईश्वर को देखा
सौभाग्य से मिले ससुराल में फिर से
पुण्य का प्रसाद मिला हो जैसे
सास ससुर जी के रूप में मां और पिता को देखा
हां मैंने ईश्वर को देखा.....।।