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एक सच्चा मित्र मिलना बहुत ही सौभाग्य की बात है. पर क्या सिर्फ हँस के बोल लेना साथ में मस्ती मजाक करना संग घूमना-फिरना मित्रता है?

मित्रता की परिभाषा आखिर क्या है? वैसे तो मित्रता को मापने का कोई मापदंड नहीं होता, ना ही मित्रता की कोई सीमा होती है। सब एक दूसरे से हर बात अलग होते हुए भी एक होते हैं।

ना ही मित्रता में मजहब कोई मायने रखता है। मित्र सिर्फ मित्र होता है हिन्दू, मुस्लिम, सिख या ईसाई नहीं। मजहब चाहें जो हो कोई फर्क़ नहीं पड़ता क्योंकि उनका मन मिला होता है।

कोई औपचारिकता नहीं फिर भी सच्चे साथी होते हैं. मित्रता का दायरा मर्यादा में रह कर भी असीमित होता है.

एक अच्छा और सच्चा मित्र मिलना या बनना इतना आसान नहीं, बहुत से दायित्व होते हैं मित्रता में भी....

एक सच्चा मित्र कौन है? एक सच्चा मित्र वो है जो चाहें कुछ भी हो जाए आपका साथ नहीं छोड़ेगा, अगर आप कुछ गलत कर रहे हों तो आपको रोकेगा भले ही उसकी कीमत उसे आपकी मित्रता से हाथ धो कर चुकानी पड़े, आप उसे अपना मित्र मानना छोड़ दो तो भी वो आपकी मित्रता से ज्यादा आपके उज्जवल भविष्य और आपसे प्रेम करेगा।

वो आपका साथ तब भी देगा जब आपके पास कुछ ना हो उसे देने को, क्योंकि वो आपकी चकाचौंध से नहीं आपसे मतलब रखेगा।

आपके मुँह पर आपकी कमी कहेगा सिर्फ जी हुजूरी नहीं करेगा। सदा आपका हित ही चाहेगा।

आजकल ऐसी मित्रता तो विलुप्त होती जा रही है सब एक दूसरे के साथ उतना ही जुड़े हैं जितने से उनका स्वार्थ सिद्ध हो जाता हो।

फिर भी कुछ लोग आज भी ऐसे हैं जो निस्वार्थ मित्रता निभाते हैं और ऐसे मित्र बहुत ही अनमोल होते हैं. जिनके पास ऐसे मित्र हैं उन्हें संजो के रखिए और शुक्रगुज़ार होइए कि आप किस्मत के धनी हैं जो ऐसे मित्र आपके पास हैं।

--दीप्ति रस्तोगी

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