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कान्हा मुझे तुमसे सिर्फ तुम्हें मांगना है
मुझे मेरे जीवन रथ के सारथी
करूं मन से तेरी आरती
झुका है ये मन जो तेरे आगे
रुका है ये मन तुझ पे ही जाके
हर पल इस मन को सिर्फ तुझे चाहना है
कान्हा मुझे तुमसे सिर्फ तुम्हें मांगना है
जो रुक जाऊं तो राह तुम ही दिखाना
जो थक जाऊं तो नई स्फूर्ति तुम्ही जगाना
रखना सदा तेरा हाथ मेरे सर पर
के तुझ से तेरा ही साथ मांगना है
कान्हा मुझे तुमसे सिर्फ तुम्हें मांगना है
तेरे इस दीप की दीप्ति हो जाए जो कभी बोझिल
अपने स्नेह से कर देना तुम ही पुनः इसे सिंचित
चिंतन में, मनन में, मेरे हर एक जतन में
तुम्हे ही अपना परम साक्षी मुझे रखना है
कान्हा मुझे तुमसे सिर्फ तुम्हें मांगना है।।

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