कतरा-कतरा है ये जिंदगी, लम्हा-लम्हा जीने दो,
कभी शाख, कभी पात, कभी फुल सा मुझको खिलने दो,
उस "शिद्दत" से अपने, सपनों को मुझको रंगने दो
बिन पंखो के उड़ना है, उस नील गगन को छूने को,
मुट्ठी में भर के जुगनू सारे, गहरी रातों में चमकने को,
हैं ख्वाब कई जो अधूरे हैं, उन सबको पूरा करने को,
माना कि मंजिल दूर है, पर पाना उसको जरूर है,
ये बात अभिमान की नहीं, आत्मविश्वास की जरूर है,
जो डटे रहे तभी जीतेंगे, यही दुनिया का दस्तूर है,
दीपायमान हो जाए ये जीवन 'दीप्ति' तुझे यूँ दीप्त होना है
सपनों में भर के रंग सुनहरे स्वर्ण अक्षरों में चमकना है
जज़्बे में फूँक प्राण सुदृढ अस्तित्व को निर्मित करना है
इन एहसासों के पन्नों में, अभी शब्दों को भरना बाकी है,
पहचान अपनी बनाने को, अभी काम बहुत सा बाकी है,
लिखने में इतना समय लगा, कहने को बात जरा सी है…..