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तलब है कि खुद की उल्फत को यूँ लफ्जों में बयां कर दूँ ,
कि दिल के अनकहे एहसासों की अपनी एक जुबां कर दूँ,
अधूरे ख़्वाबों की ज़मीं का मुक्कमल इक आसमाँ कर दूँ ,
जान पंखों में हो ना सही,पर हौंसले से ऊँची उड़ान भर लूँ,
अश्कों को तो आँखों में भी जगह नहीं मिलती,
तो क्यों ना लबों पर हसीं और मीठी मुस्कान रख दूँ,
जिंदगी है तो उलझनें लगी ही रहेंगी, तो छोड़ के दुश्वारियां,
क्यों ना खुदा की इनायत का अब शुक्रिया कर लूँ,
सारी उम्र यूँही फिक्र करने में गुजार दी,
सोचती हूं क्यों ना दिल को थोड़ा सा अब बेफिक्ररा कर लूँ ,
आज फुर्सत मिलेगी ना कल ,चंद लम्हें चुरा कर सारे जहान से,
मुट्ठी में उम्मीद का अपना एक आसमाँ कर लूँ ,
सोचा आज कुछ खुद को भी यूँ बयां कर लूँ ,
खुशियों को अपना आशियां लिख दूँ ........।।

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