सत्य की असत्य पर विजय के प्रतीक , अच्छाई की बुराई पर विजय के प्रतीक पर्व विजयादशमी दशमी की शुभकामनाएं देते हुए अपने कुछ विचार प्रकट करना चाहूँगी,

आज सोशल मीडिया पर देखा कि सब जगह रावण ही रावण है, अचानक ही सही पर "रावण" highlight हो गया और "राम" पीछे रह गया…

अनेक मैसेज में देखा कि सीता पवित्र मिली वो रावण की मर्यादा थी और भी पता नहीं कितने मैसेज जो कि रावण की खूबियां गिना रहे थे मुझे लगा ये देख के शायद साकेत में श्री राम भी मुस्का रहें होंगे कि वाह रे कलयुग आज इस मर्यादापुरुषोत्तम श्री राम की मर्यादा पर रावण की मर्यादा भारी पड़ गयी…. मैं मर्यादापुरुषोत्तम श्री राम जिसने सम्पूर्ण जीवन सिर्फ मर्यादा का पालन किया वो द्वितीय हो गया और सीता का अपहरणकर्ता रावण के गुणों का यूँ बखान हुआ कि वेदों का ज्ञाता, महान पंडित, सीता को स्पर्श ना करने वाला मर्यादित पुरुष बन रावण प्रथम स्थान पर आ गया।

परन्तु ये मात्र उपहास या व्यंग नहीं है विचार करने योग्य विषय है

आज वास्तव में हो भी यही रहा है मर्यादित आचरण करने वाले को कोई पूछता नहीं और जो साम दाम दंड भेद करते है उनके ही चर्चे होते हैं।

सत्य अंतिम हो गया और असत्य प्रथम आ गया,

अच्छाई के चाँद को बुराई की चका चौंध ने छिपा दिया

पता नहीं ये किसकी विजयादशमी थी कि "राम" कहीं दिखा नहीं और "रावण" फोटो और selfie से हर ओर छा गया…।।

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