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मैं कैसे लिखूँ "माँ" शब्द का सार,
माँ में छिपा है सारा संसार,
माँ की दुनिया हम बच्चे हैं,
उसके सब एहसास सच्चे हैं,
मैं हँसु तो वो खुश होती है
मैं रोऊँ तो वो भी रोती है
मेरी हर चाहत उसकी मन्नत है
मेरी माँ नहीं वो तो जन्नत है।

अपनी माँ तो सबको ही अच्छी लगती है मुझे भी मेरी माँ बहुत प्रिय हैं। ये मेरा सौभाग्य है कि मुझे सासु माँ के रूप मे एक और माँ मिलीं, जिन्होंने मुझे इतना प्यार दिया कि ये कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि मेरे मन में अब मेरी सासु माँ की जगह मेरी माँ के जैसी ही है, जब-जब मुझे जरूरत पड़ी उन्होंने माँ की तरह मेरा ख्याल रखा कभी कोई मुझे ताना नहीं दिया मैं उनसे भले ही रूठ जाऊँ पर वो मुझसे कभी नहीं रूठती, बल्कि हम दोनों ही एक दूजे से ज्यादा देर रूठ ही नहीं पाते..।
मैंने देखा है, ल़डकियों को शादी के बाद सासु माँ को मम्मी जी कह्ते हुए, पर पता नहीं क्यों मैं कभी कह ही नहीं पायी सासु माँ को मम्मी जी...एक ममत्व से भरी भोली-भाली सी, निश्चल मुस्कान रखने वाली सासु माँ....उनके निर्मल निश्चल प्रेम को मैं माँ से कम तोल ही नहीं पायी..
मुझे उन्हें देख कर सदैव माँ की ही अनुभूति हुई,
पता नहीं किस पुण्य के फलस्वरूप मुझे मेरी मम्मी मिली हैं जो किसी भी तरह से मेरे लिए माँ से कम नहीं।
मेरी दोनों माँ के लिए और अपने मातृत्व के सुखद एहसास को शब्दों में पिरोकर लायी हूँ ....


"माँ" तुमसे ही शुरू हुआ मेरा जीवन,
तुम्हारा ममतामयी स्पर्श, तुम्हारा वात्सल्य,
तुम्हारा निश्चल स्नेह ,
मेरी पहली शिक्षिका, मेरी पहली सहेली
तुम्हीं मेरी हर मुश्किल का हल,
तुम्हीं सुलझाती मेरे जीवन की हर पहेली
तुम प्रेम का सागर, तुम सरल रस से भरी गागर,
मेरी हँसी खुशी से ही मिलती तुझे खुशी
मेरी तकलीफ मुझसे ज्यादा सदा तुझे हुई
तेरे प्रेम का कोई पार नहीं माँ,
तेरे नाम सा कोई सार नहीं माँ,
आज मै भी माँ हूँ,
तेरे हर एहसास को जीती हूँ...
तेरे जैसा मैं भी महसूस करती हूँ वो सुखद एहसास
एक सुखमय एहसास, "मातृत्व का एहसास"
"माँ" तुझसे ही पाया मैंने, जीवन का सुंदर "आधार"
तेरे निर्मल-निश्चल प्रेम का, कैसे चुकाऊं मैं "आभार"।।

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