मैं एक "स्त्री" हूँ
बेशक मुझे भी हक है "ना" कहने का
क्यों मिलाऊँ मैं बेवजह हाँ में हाँ ?
जब मन का ना होगा तो मैं भी "ना" कहूँगी
सिर्फ माँ पत्नि बहन बहु या बेटी ही नहीं
मैं एक "स्त्री" भी हूँ
सारे किरदार निभाते-निभाते जैसे भूल सा गयी,
कि मेरा स्वयं का भी एक "अस्तित्व" है
सबका मन रखती हूँ, सबके मन का करती हूँ,
पर क्यूँ भूलूँ कि मैं भी एक "मन" रखती हूँ,
स्त्री हूँ मैं स्वच्छंद विचारों की,
स्वयं के लिए भी मेरे कुछ दायित्व हैं,
अब से उन्हें भी निभाऊंगी,
मेरा भी मन है मैं भी मन की सुनूँगी,
मेरा भी मन है मैं भी मन की करुँगी,
जब मन का ना होगा तो मैं भी "ना" कहूँगी।।