ऐसी हूँ या वैसी हूँ, चाहें मैं जैसी भी हूँ,
मैं खुद को पसंद हूँ,
कोई फर्क़ नहीं पड़ता मुझे, कि तुमको मैं पसंद हूँ या नापसंद हूँ,
चाहें गलत हूँ, चाहें सही हूँ, पर जो दिखती हूँ! हाँ मैं वही हूँ,
मन में कोई मलाल नहीं रखती, भले ही होठों पर सवाल रखती हूँ,
मुझे अच्छा लगता है! कि मैं स्वच्छंद हूँ!
खुल के जीती हूँ, खुल के हँसती हूँ,
लगा-लिपटी करती नहीं, साफ़ साफ़ कहती हूँ,
जो मन में होता है, बस वही करती हूँ,
सबकी फिक्र करती हूँ, पर खुद पर भी मरती हूँ,
तो क्या गलत करती हूँ?
जो औरों से ज्यादा, मैं खुद को पसंद करती हूँ…..

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