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मैंने लफ्जों में मेरे एहसासों की दास्तान लिखी है,
जो कभी इसको अपनी तो कभी उसको अपनी लगी है,
सहजता से लिखे हैं मैंने अपने ये मन के पन्ने,
जाने कितनों के मन में छुपे एहसासों के अल्फाज़ बन गए,
किसी की आवाज़ बन गए तो किसी के ख्वाब बन गए,
किसी के मन को कांटों से चुभ गए,
तो किसी के मन के गुलाब बन गए,
वो लेखन ही क्या जिससे कोई ताल्लुक न जुड़ पाए,
वो लेखन ही क्या जो मन में न उतर पाए,
मेरी लेखनी तेरा जितना शुक्रिया करूं वो कम है,
के तुझ से जुड़के ही तो खुद से मिली हूं,
ऐसा लगता है जैसे मुझे तख्तोंताज मिल गए,
देखे भी न थे जो ख्वाब वो ख्वाब मिल गए,
लिखते लिखते मेरे मन के एहसास,
मेरे एहसासों की सुंदर किताब बन गए..!