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थोड़ा धीरे बोला करो,
ये मत पहनो, वहाँ मत जाओ ,
ये मत करो, वो मत करो
ऐ दुनिया...! अब तुम बस करो ना,
मैं जैसी हूँ मुझे वैसा रहने दो
फिर ना कहना बदल गयी मैं
आखिर मुझको मुझसा ही रहने दो ना,
कितनी फ़िक्र करती हो,
गुस्सा कम करा करो
तुम बिल्कुल नहीं समझती हो
ऐ दुनिया...! अब तुम भी समझाना बंद करो ना,
क्या समझाना चाहती है मुझे
मैं जितना समझती हूँ काफी है
आख़िर तुम भी मुझको मुझसा ही समझा करो ना,
कौन नहीं ऐसा खामी नहीं जिसमें
खूबियों पर मेरी क्यों नज़रे नहीं तेरी
क्यों तराशना है तुझे मुझको
ऐ दुनिया...! अब मुझको तराशना बंद करो ना,
जो भी हूँ जैसी भी हूँ
खुद के लिए बेहतर हूँ मैं
आखिर मुझमें मुझको बाकी रहने भी दो ना...।

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