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नित कर्म कर, नित कर्म कर,
होना है अगर तुझको "सफ़ल",
विश्वास रख "स्वयं पर",
प्रयास कर "निरन्तर",
गिरता, संभलता चलता चला चल,
बढ़ता चला चल निज पथ पर,
पर्वत भी दे देता है रास्ता,
तेरी हठीली "हठ पर",
ना हो विचलित तु क्षण भर,
उद्देश्य अपना "दृढ़ कर",
उठा के फेंक दे हर वो कंकड,
जो बिछे हों तेरी डगर पर,
दे उखाड़ हर शूल,
जो चुभता हो तेरे पग पर,
कर भाग्य विधाता को नमन,
तु कर्म को अपने दृढ़ कर,
क्यूँ रुकता है तु मुश्किलों से डर कर,
रख हौंसला आने वाली "सेहर पर",
चुनेगी स्वयं मंजिल तुझे,
होके चरणों में गद-गद,
नित कर्म कर नित कर्म कर,
होना है अगर तुझको सफ़ल।।

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