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ना राधा हूँ ना मीरा हूँ, नहीं पता कि कौन हूँ मैं?
पर मेरे जीवन के हर इक क्षण में,
हे कृष्ण! तुम्हीं हो,
आस भी तुम हो, विश्वास भी तुम हो,
सत्य कहूँ तो श्वास भी तुम हो,
जब-जब मैं डग मग होती हूँ,
जो थामते हैं वो हाथ भी तुम हो,
वाद तुम्हीं, सम्वाद भी तुम हो,
मेरा हर परमार्थ भी तुम हो,
अग्नि से प्रचंड हो, सूर्य से उज्जवल हो
जल से निर्मल हो, चांद से शीतल हो
मुझे पता है तुम मेरे भीतर हो
सारथी भी तुम हो, सार भी तुम हो
मेरे हर कर्म का आधार भी तुम हो
आकार भी तुम हो, प्रकार भी तुम हो
स्वप्न भी तुम हो, साकार भी तुम हो
बसे हो हर कण-कण में तुम ऐसे, कि
हे कृष्ण! तुम ही आरम्भ हो और अंत भी तुम्हीं हो…

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