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एक अत्यंत दुखद घटना जो आजकल मुख्य चर्चा का विषय है श्रद्धा हत्याकांड... जब मैंने सोशल मीडिया पर ये पढ़ी तो रोंगटे खड़े हो गए... एक नृशंस हत्या।
पता नहीं क्यों ये आजकल की पीढ़ी अपने ही माता पिता की सही बात तक नहीं मानती... कोई माता पिता बेवजह अपने बच्चों को डांटना नहीं चाहते वो तो बस उन्हें एक अच्छा इंसान बनाना और अच्छा भविष्य देना चाहते हैं।
अगर वो अपने बच्चों पर रोक टोक करते हैं तो उसमें भी बच्चों की ही भलाई छुपी होती है...सिर्फ बच्चों के भले के लिए ही होती है उसको उनका स्नेह समझे....
क्योंकि जिन बागो में माली नहीं होते वो उपवन नहीं जंगल बन जाते हैं।
श्रद्धा के लिए सहानुभूति भी है और रोष भी...।
मेरे मन में कुछ विचार आये हैं जो लिख रहीं हूँ मुझे लगता है जिस पर सभी माता पिता को विचार करना चाहिए
हम सबको अपने बच्चों का perception developed करना है उन्हें सही और ग़लत को पहचानने की समझ और परख होनी चाहिए
उन्हें झूठी तारीफ और सच्ची सीख और साथ का फर्क़ समझ आना चाहिए
उन्हें समझ आना चाहिए कौन सच्चा है कौन झूठा..
जरूरी नहीं कि जो मिश्री सी बातें करे वो उनका शुभचिंतक भी हो
वैसे भी ये तो सच है जरूरत से ज्यादा मीठा हमेशा सेहत के लिए हानिकारक ही होता है
दवा, नीम और करेला कडवे होते हैं पर हमारी सेहत के लिए अच्छे होते हैं तो जो आपको गलती पर टोके या कुछ भी ग़लत करने से रोके वो आपके दुश्मन नहीं सबसे अच्छे दोस्त होते हैं।
अच्छे दोस्त वहीं हैं जो गलती पर रोके और मुसीबत में बिन कहे साथ दें। मतलबी लोग दोस्त नहीं होते वो तो तब तक आपके साथ हैं जब तक उन्हें आपसे मतलब है
ऐसे लोग दोस्त नहीं होते... बस मतलबी होते हैं।
अगर बन पाये तो अपने बच्चों के दोस्त बने उन्हें ऐसा माहौल दें कि वो अपना मन आपके सामने खोल पाएं उन्हें विश्वास करायें कि हर परिस्थिति में आप उनका साथ अवश्य देंगे और ये तो सर्वविदित है माता पिता से बड़ा हितेषी कोई नहीं हो सकता।
बच्चों को प्यार कीजिए उनकी फरमाइशें भी पूरी कीजिए पर कहीं ना कहीं उन्हें ये भी सिखाइए कि कुछ चीजें ऐसी भी हो सकती है जो उनको नहीं मिल सकती,
उनकी हर जिद्द और ख्वाहिश पूरी नहीं हो सकती उनको "ना" सुनना और स्वीकार करना भी सिखाना होगा।
बात मजहब की नहीं संस्कारों की है अच्छे संस्कार ही गुनाह करने से रोकते हैं।