हे कृष्णम ! हे गोविन्दम! हे आनदम !
प्रिय मित्र तुम इस हृदय का स्पंदन हो...
ललाट पे लगा चंदन हो,
नयनों में सजा अंजन हो,
सुख में हंसी का गुंजन हो,
दुख में साथ का आलिंगन हो,
प्रिय मित्र तुम इस हृदय का स्पंदन हो...
तुम ऐसे मनभावन हो,
जैसे कि जीवन के सावन हो,
तुम संग नीरस भी सरस हो,
हे जीवन आनंद तुम्हारा वंदन हो,
प्रिय मित्र तुम इस हृदय का स्पंदन हो...
इतना अनंत तुम से ये संबंध हो,
के तुम से ही आरंभ तुम से ही अंत हो,
तुम चंद्र से शीतल औ पवन से चंचल हो,
हे वंदनीय तुम्हारा अभिनंदन हो,
प्रिय मित्र तुम इस हृदय का स्पंदन हो...
तुम पावन हो, तुम पवित्र हो,
सुदामा के कृष्ण से मित्र हो,
तुम कंचन हो, तुम कुंदन हो,
हे नंद यशोदा नंदन
तुम से कृष्ण-सुदामा सा बंधन हो,
प्रिय मित्र तुम इस हृदय का स्पंदन हो...!

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