"सम्मान" कोई मानक नहीं कि छोटे को कम देना है और बड़े को ज्यादा...
हर रिश्ता अपनी एक गरिमा रखता है, प्रेम, आदर और उदारता अगर ये तीनों भाव छोटे और बड़े दोनों में हों कभी मत भेद भले ही हो जाए परन्तु मन भेद कभी नहीं होगा। एक दूसरे की भावनाओं का लिहाज अगर दोनों तरफ से हो तो कभी कोई मन-भेद आए ही ना...
जिस तरह बड़े को सम्मान देना छोटे का कर्त्तव्य है उसी तरह अपना बडप्पन और अपनी उम्र, ओहदे या पद की गरिमा को बनाए रखना भी बड़ों का दायित्व होना चाहिए
"सम्मान" को छोटे और बड़े के तराजू में क्यों तोल दिया जाता है...
"सम्मान" कोई मानक नहीं है, सम्मान तो एक अधिकार है...
छोटा हो या बड़ा अपने हिस्से का "सम्मान" तो सबको चाहिए...।