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कह्ते हैं पुरुष प्रधान समाज है जिसने महिलाओं के विकास को अवरुद्ध किया है,
कुछ कह्ते है स्त्री ही स्त्री की दुश्मन है,
सोचा इस टिप्पणी पर अपने विचार व्यक्त करूं….
मुझे लगता है, कि पुरुष या स्त्री नहीं बल्कि
"संकुचित सोच" विकास को अवरुद्ध करती है
अगर हम से कोई छोटा आगे बढ़ जाता है तो हम उसकी सराहना करने के बजाय उसे अनदेखा करने लगते हैं शायद इसको ईर्ष्या भी कह सकते हैं…।
पता नहीं क्यों? एक-दूसरे का साथ हम निष्पक्षता पूर्वक नहीं दे पाते…।
क्यों हम किसी की प्रतिभा को उसके उम्र से या पद से जोड़ देते हैं?
जो अच्छा कर रहा है वो चाहें कोई भी हो हम उसके लिए ताली क्यों नहीं बजा पाते ?
जब तक हम व्यापक नहीं होंगे,
उदार नहीं होंगे,
तब तक ये समस्याएं आती रहेंगी।
जब तक हम आगे बढ़ने वाले की टांग खींचने के बजाय, उसे आगे बढ़ने के लिए हाथ नहीं देंगे,
ये समस्याएं आती रहेंगी।
सबसे महत्वपूर्ण ये है जब तक हम स्वयं ही स्वयं को आगे बढ़ने से रोकते रहेंगे
तब तक ये समस्याएं आती रहेंगी।
महिला सशक्तिकरण तभी सम्भव है जब अपने-पराये, छोटे-बड़े, स्त्री-पुरुष से ऊपर उठ कर एक निष्पक्ष व्यक्ति के रूप में एक दूसरे का साथ दें।
अंत में अपनी ही कुछ पंक्तियाँ यहां दोहराना चाहूँगी…

तुम भी 'चमको', हम भी 'चमके'-2
कुछ ऐसी साझेदारी हो
प्रेम और समभाव से आगे बढ़े "हम"
ये सबकी जिम्मेदारी हो….।

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