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सौ फीसदी पाने के लिए अपना सौ फीसदी देना पड़ता है
अपने सपनों को खुद ही जी जान से संजोना पड़ता है
मन के एहसासों को बिन कहे कोई नहीं समझता
उन्हें शब्दों में अब पिरोना पड़ता है
बेमतलब ख़फ़ा रहने की तो ज़माने की रवायत है
पर हम हों ख़फ़ा तो ये भी कहना पड़ता है
भले ही हाजिर रहो आप जरूरत पर सबकी,
फिर भी अपनी हो जरूरत तो कहना पड़ता है
मन मे भले ही हो वाह-वाह, पर तारीफ़ से गुरेज है
जाने ये कैसा बैर है, कि बेवजह चुप रहना पड़ता है
किसी को ना दोष दो कभी सब कर्मों का लेखा है
अपने-अपने हिस्से का दर्द सबको सहना पड़ता है
सौ फीसदी पाने के लिए अपना सौ फीसदी देना पड़ता है
अपने सपनों को खुद ही जी जान से संजोना पड़ता है….

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