Image by CJ from Pixabay
कमियां तलाशते तलाशते मुझमें
अनजाने मे वो लोग ही मुझे तराश गये
एक छोटे से इस पौधे को, अविश्वास का पानी देकर
मन में मेरे पलास सा "आत्म विश्वास" दे गये
जो समझे थे मुझे खोटा सिक्का
कतराते थे रखने में रिश्ता
पर हम भी कहाँ रुकने वाले थे
ये बढ़ते कदम ना यूँ थमने वाले थे
हम तपते गए , हम तपते गए
पहले खरा सोना ,फिर कुंदन बन गए,
यूँ किए आत्म चिंतन कि हम मन से चंदन बन गए
सच कहूँ तो; दिल से शुक्रिया सबका
कुछ सबक दिए हमको, और
कुछ हम भी सबक बन गए
बिन रुके, बिन थके, डटे रहे, चलते रहे
हाँ ! मंजिल अभी भी दूर है,
पर अब भी वही फितूर है
स्वयं ही चले ,स्वयं ही बढ़े
स्वयं ही प्रेरक बने,और
स्वयं ही प्रेरणा बन गए।।