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कमियां तलाशते तलाशते मुझमें
अनजाने मे वो लोग ही मुझे तराश गये
एक छोटे से इस पौधे को, अविश्वास का पानी देकर
मन में मेरे पलास सा "आत्म विश्वास" दे गये
जो समझे थे मुझे खोटा सिक्का
कतराते थे रखने में रिश्ता
पर हम भी कहाँ रुकने वाले थे
ये बढ़ते कदम ना यूँ थमने वाले थे
हम तपते गए , हम तपते गए
पहले खरा सोना ,फिर कुंदन बन गए,
यूँ किए आत्म चिंतन कि हम मन से चंदन बन गए
सच कहूँ तो; दिल से शुक्रिया सबका
कुछ सबक दिए हमको, और
कुछ हम भी सबक बन गए
बिन रुके, बिन थके, डटे रहे, चलते रहे
हाँ ! मंजिल अभी भी दूर है,
पर अब भी वही फितूर है
स्वयं ही चले ,स्वयं ही बढ़े
स्वयं ही प्रेरक बने,और
स्वयं ही प्रेरणा बन गए।।

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