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सरल लिखना जितना आसान है सरल होना उतना ही कठिन है।

अक्सर हम चाहते हैं कि सब हमको समझें, हमे महत्व दें पर कैसे ? हम स्वयं से पूछते हैं कि कभी हमने उन्हें समझा या उतना महत्व दिया ? जिसके वो योग्य हैं, वास्तव में नहीं। सबको सम्मान चाहिये, प्रेम चाहिये, मह्त्व चाहिये, परंतु देगा कोई नही।

दूसरों की गलती पर क्या हम उतनी जल्दी उन्हें क्षमा कर देते हैं जितना अपनी गलती के लिए उनसे चाहते हैं, वास्तव में नहीं।

अक्सर हम दूसरों की गलती पर जज और अपनी गलती पर वकील बन जाते हैं, और जिसकी गलती है उसे ना कहकर सारी दुनिया से कहेंगे ये ऐसा है, ये वैसा है, क्यों? क्या बाकी दुनिया से कहने से उसकी गलती सुधर जाएगी? बिल्कुल नहीं। बल्कि हमारे और उसके रिश्ते की खटास और बढ़ जाएगी। परंतु एक और समस्या है यहां जिसकी बात है अगर उस से कही भी तो वो समझेगा नहीं, उल्टा आपके विरुद्ध हो जाएगा हो सकता है आपसे नफरत भी करने लगे। कोई किसी को सरल होने भी तो नहीं देता क्योंकि सरलता और सहजता किसी को रास भी तो नहीं आती। सब एक दूसरे को जटिल बनाने में लगे हैं, फिजूल की पता नहीं कितनी औपचारिकता पाल रखी हैं।

वास्तव में सब एक दूसरे से सिर्फ जरूरतों के लिये ही जुड़े हैं, भावात्मक जुड़ाव अब रखते ही कहां हैं?

एक कटाक्ष करना चाहूँगी, जबतक मतलब है तबतक ही पहचानते हैं और मतलब निकल गया तो पहचानना तो दूर की बात है देख कर भी अनदेखा कर देते हैं। अरे....और तो और सोशल मीडिया की पोस्ट तक लाइक नहीं करते, ये तो मात्र एक उदाहरण था ये बताने के लिये कि कैसी मनोदशा कि और हम बढ़ रहे हैं,जहां सारी दुनिया की वाह-वाह हमको चाहिए और हमारे अपने रिश्तों को हम पूछते भी नही।

सरल लिखने के लिए सरल है बाकी सरल होना शायद सबसे जटिल है और उसकी एक अच्छी खासी कीमत एक सरल व्यक्ति को चुकानी पड़ती है।

मुझे और मेरी लेखनी को यथार्थ लिखना पसंद है शायद इसीलिए मेरी लेखनी ही मेरी सबसे अच्छी सहेली है मेरे मन को सुन्दर शब्दों मे काग़ज पर उतार देती है, धन्यवाद मेरी लेखनी मेरे मन की आवाज़ बनने के लिए।

दीप्ति रस्तोगी की कलम से.

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