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हां चालीस के पार हैं हम
नादान से समझदार हैं हम,
बालों में सफेदी चढ़ने लगी है
एक दो झुर्री भी दिखने लगी है
पर जिंदगी में जिंदगी भी दिखने लगी है
अब कोई बात दिल पे लगे तो रोते नहीं हैं
बेफिजूल की बातों पे आपा खोते नहीं हैं
खुद ही खुद पे मरने लगी हूं
शिद्दत से खुद से इश्क करने लगी हूं
थोड़ी सी बेपरवाह हूं इस जमाने से
अब अपने मुताबिक चलने लगी हूं
मैं घुलने लगी हूं अपने ही रंग में
अपने से अब रोज मिलने लगी हूं