Image by Pete Linforth from Pixabay
कभी न सोचा था हमनें के
दिन भी ऐसा आयेगा
बदलते बदलते ये कलयुग
इतना बदल जायेगा
आज कल जो हो रहा है
पाप के बीज बो रहा है
गद्दी पर बैठे हैं दशानन
भक्त राम का रो रहा है
गूंगे बहरे बन गए सारे
मानव ही मानव को मारे
कह कर राम राम की बोली
भरते जाए अपनी झोली
किसे पड़ी है किसी की चिंता
मानवता अब रही न ज़िंदा
झूठ पंख फैलाता जाए
सत्य हुआ खुद पर शर्मिंदा
कहां खो गई मानव जाति
लड़ते हैं पशुओं की भाँति
न समझे कोई प्रेम की बोली
किसने इनमें नफरत घोली
कभी न सोचा था हमनें के
दिन भी ऐसा आयेगा
बदलते बदलते ये कालगुग
इतना बदल जायेगा
ईश्वर की इस धरती पर
न जाने क्या क्या हो रहा है
गद्दी पर बैठे हैं दशानन
भक्त राम का रो रहा है