वो हथकरघा बुनकरों की जादूगरी ही होगी, जो इस ऐतिहासिक,सांस्कृतिक कला 'हथकरघा' का परचम 5000 ईसा पूर्व से आज तक अनवरत लेहरा रहा है,मिस्र के पिरामिडो में मलमल में लिपटे शव हो, यूनानी इतिहासकारो की व्याख्या हो ,या अकबर के शासनकाल में रेशमी वस्त्रो और अन्य उत्पादों का फारस और अरब देशो में निर्यात हो, इसी तरफ संकेत करते है की प्राचीन काल से ही 'हथकरघा' कला ने, न केवल सांस्कृतिक,पारम्परिक महत्त्व रखता है बल्कि देश की अर्थव्यवस्था में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
‘हथकरघा’ उद्योगों की बात करे तो यह संगठित क्षेत्र का ऐसा उद्योग है जिसने एक तरफ रोजगार के अवसरों निर्माण किया है वही दूसरी और आत्मनिर्भर भारत को भी मजबूत नीव प्रदान की है आत्मनिर्भर भारत जिसकी जितनी प्रासंगिकता 5 अगस्त 1905 में कलकत्ता के टाउन हॉल से गूँजित हुए 'स्वदेशी आंदोलन' के वक़्त थी,उतनी ही आज भी है जब समूचा विश्व और भारतवर्ष कोविड 19 महामारी से दो चार हो रहा है ऐसे में कहीं न कहीं आत्मनिर्भर वो सूत्र है जिसको अपना कर जैसे सन 1905 में बदलाव का बिगुल बजा था जब पहली बार महान स्वतंत्रता सैनानी वीर सावरकर ने 'स्वदेशी; नारा देकर विदेशी वस्त्रो को आग के हवाले किया, और राष्ट्रपिता 'महात्मा गाँधी' ने कहा की "मै चरखे के लिए इस सम्मान का दावा करता हूँ कि वह हमारी गरीबी की समस्या को लगभग बिना कुछ खर्चा किये,और बिना किसी दिखावे के अत्यंत सरल और स्वाभाविक ढंग से हल कर सकता है चरखा राष्ट्र की समृद्धि और आज़ादी का चिन्ह है"।
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राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की बाले मिया मैदान में हथकरघा से सम्बंधित कही वो बाते ही थी जिससे से प्रभावित होकर कालजयी कलमकार मुंशी प्रेमचंद ने शिक्षा विभाग से इस्तीफा देकर "करघे का कारोबार" शुरू किया जो लघु और कुटीर उद्योग के अंतर्गत कम लगत के साथ शुरू हो जाता।
भारतीय अर्थव्यवस्था में हमेशा कुटीर उद्योगों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है जिसके अंतर्गत हथकरघा के कारीगरों को हमेशा ही प्रोत्साहन मिला है वर्तमान में तो हाथ के बुने सामान आधुनिक तकनीकी के समानान्तर भूमिका निभा रहे हैं।
आज समूचा विश्व आर्थिक मंदी और कोविड 19 की महामारी से जूझ रहा है ऐसे में माननीय प्रधानमंत्री का एक बार पुनः देशवासियो से आत्मनिर्भरता की मशाल को थमने का आवाहन करना कही न कही संकेत करता है की डगमग करती अर्थव्यवस्था में आत्मनिर्भरता की क्या महत्त्व हैऔर वोकल फॉर लोकल को अपना कर न केवल हम आर्थिक में आज समूचा विश्व आर्थिक मंदी और कोविड 19 की महामारी से जूझ रहा है ऐसे में माननीय प्रधानमंत्री का एक बार पुनः देशवासियो से आत्मनिर्भरता की मशाल को थमने का आवाहन करना कही न कही संकेत करता है की डगमग करती अर्थव्यवस्था में आत्मनिर्भरता की क्या महत्त्व हैऔर वोकल फॉर लोकल को अपना कर न केवल हम आर्थिक स्थिति को सुधर पाएंगे बल्कि उससे भीतर ही रोजगार के नए अवसर भी उजागर होंगे। आत्मनिर्भर भारत की महत्तता आवश्यकता को समझते हुए माननीय प्रधानमंत्री जी ने कोविड काल में लोखड़ौन से प्रभावित अर्थव्यवस्था, कृषि और लघुकुटीर उधोगो लिए २० लाख करोड़ का आर्थिक पैकेज प्रदान दिया। लॉकडाउन के दौरान पाचवे राष्ट्रिय सम्बोधन में आत्मनिर्भर बनने का रोडमैप भी प्रस्तुत किया ताकि देशवासी उस पर चलकर इस कठिन दौर का मुकाबला करने में सक्षम रहे।
आत्मनिर्भर भारत की कल्पना आज की तो नहीं, लेकिन फिर भी सही मायनो में ये धरातल पर न आ सका बल्कि एक वक़्त तो ऐसा भी था जब लघु कुटीर उद्योगो की दशा खास कर हथकरघा कारीगरों की स्थिति इतनी दयनीय थी की उनके आगे की पीढ़ी को रोजी रोटी चलाने के लिए रोजगार के अन्य विकल्पों का रुख करना पड़ा जबकी हथकरघा उद्योग का हमेशा से जीडीपी में अतुलनीय योगदान रहा है जिसके महत्त्व से परिचित होकर 7 अगस्त को भारत सरकार द्वारा 29 जुलाई, 2015 की तारीख के राजपत्र अधिसूचना के माध्यम से राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के रूप में अधिसूचित किया गया था, जिसका उद्देश्य हथकरघा उद्योग के महत्व एवं देश के सामाजिक आर्थिक योगदान में इसके भूमिका के बारे में जागरूकता फैलाना और हथकरघा को बढ़ावा देना, बुनकरों की आय को बढ़ाना और उनके गौरव में वृद्धि करना था और इस क्षेत्र के समावेशी विकास को सुनिश्चित करने के लिए सुदृढ़, प्रतिस्पर्धी और गतिमान हथकरघा क्षेत्र का विकास करना ताकि जैसा की आत्मनिर्भर भारत को लेकर माननीय प्रधानमंत्री की जो संकल्पना है की "भारत एक ऐसे राष्ट्र बनने की ओर अग्रसर है जहां न शोषक होगा, न कोई शोषित, न मालिक होगा, न कोई मजदूर, न अमीर होगा, न कोई गरीब”।
जब हम आत्मनिर्भर भारत में स्वरोजगार की सम्भावनाये तलाश करते है तो हथकरघा का ख्याल सबसे पहले मस्तिष्कपटल पर उभरता है जिसने हमेशा ही निर्धन तबके को स्वाभिमान से जीवनयापन सिखाया है विगत वर्षो में हथकरघा की स्थिति को दुरुस्त करने के लिए वैसे तो कई कार्यक्रम चलाये गए लेकिन ये कहना भी सटीक होगा की बुनकरों, शिल्पकारों को 2015 के बाद सरकार द्वारा अद्भुत प्रोहत्साहन मिला है फिर चाहे एक से बढ़ कर एक योजनाए जिसमे 2019 -20 के धन का आवंटन हो , राष्ट्रीय हथकरघा विकास कार्यक्रम,जिसके अंतर्गत कच्चे माल, डिज़ाइन निविष्ट ,प्रोधोगिकी विकास , प्रदर्शनियों के माध्यम से विपरण सहायता, शहरी हाटो की व्यवस्था ,विपणन परिसरों के स्थाई ढचो का सृजन, हथकरघा उत्पादों के ई-विपणन डिजिटल मार्केटिंग के लिए वेब पोर्टल्स करने का समग्र प्रयास। इसी दिशा में केबीएस का अध्याय जुड़ गया है 'अगरबत्ती आत्मनिर्भर मिशन' निश्चित रूप से आत्मनिर्भरभारत की जड़ो को मजबूती प्रदान करेगा .
यहाँ तक तो बात हुई की किस प्रकार से सार्थक नीतिया कार्यशील पूँजी और जरूरी रियायते देकर सरकार ने हथकरघा उधोगो को, बुनकरों शिल्पकारों को सबल दिया,अब बात आपकी हमारी क्योकि किसी भी लक्ष्य को समाज के सहयोग के बिना नहीं पाया जा सकता जैसे स्वराज्य की स्वदेशी की मशाल ने 1905 में भारत को आत्मनिर्भर धरातल दिया उसी प्रकार जरूरी है की वर्तमान समय में भी कठिनाइयों से जीतने के लिए लोकल के लिए वोकल का समझे और आत्मनिर्भर बने।
हमारा देश विविधताओं का देश है जहां चंदेरी का मलमल, वाराणसी के सिल्क के बेल बूटेदार वस्त्र, राजस्थान एवं ओडिशा के बंधेज की रंगाई, मछलीपटनम के छींटदार कपड़े, हैदराबाद के हिमरूस, पंजाब के खेस और फुलकारी , फर्रुखाबाद के बेमिसाल प्रिंट, प्रूर्वोत्तर राज्यों के बम्बू प्रोडक्ट्स जिसमे असम एवं मणिपुर के फेनेक तथा टोंगम तथा बॉटल डिजायन,बम्बू फर्नीचर, मध्य प्रदेश की महेश्वरी और वडोदरा की पटोला साड़ी ऐसा साधन है जो सांस्कृतिक विविधताओं को दर्शाता है और सांस्कृतिक विरासत को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाने की ताक़त रखता है लेकिन इस विषय में दो विचार करना बेहद जरूरी हो जाता है पहली दिल्ली हाट की तर्ज पर समूचे भारत में हाट की स्थाई हाट की व्यवस्था की जाए,ताकि फुलकारी को कांजीवरम पहनने वाले भी समझे,वैसे तो अब ऑनलाइन प्लेटफॉर्म की कमी नहीं है लेकिन ये भी कही न कही सच है की हम ज्यादतर किसी वस्तु के विषय में प्रत्यक्ष रूप से जानकार ही उनको खरीदने का मन बना पाते है, दूसरा पूर्ण रूप से हमारा कर्तव्य है की हम स्वदेशी को प्राथमिकता दे हथकरघा ही नहीं बल्कि सभी क्षेत्रों में , नवाचार के नए नए आयाम स्थापित करे।
जैसा की माननीय प्रधानमंत्री जी ने कहा "जीरो डिफेक्ट का ताना,जीरो इफ़ेक्ट का बाना, ऐसा प्रोडक्ट सामने आये जो दुनिया को भा जाये और जो एनवीरोमेंट के लिए सहायक हो, उपकारक हो, एनवीरोमेंट फ्रेंडली हो".
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