बेसहारा किरणों का ये पंछी
आसमां जो ढूंढ रहा था...
मगरुर होने से कोई
महशूर नहीं होता...
प्यासे के हर तलाश में
पानी नहीं होता...
बचपन अगर बेसहारा हो
तो वो कमजोर नहीं होता...
आशाओं के किरणों का
कोई सहारा नहीं होता...
अगर खत्म हो जाएं ये दुनिया
तो दिल पत्थर नहीं होता..
दरवाज़ा बस... खुला कर देने
से कोई आजाद नहीं होता...
अरे समझो इस बात को जरा ...
पिंजरे में कैद किसी पंछी को
भी उड़ाना सिखो... हो अगर मोहोब्बत उस्से.. तो आसमां में उड़ते देख उसे खुश होने का कोई बहाना नहीं होता...!
खुबसूरती के नकाब में खेला
हर खेल खुबसुरत नहीं होता...
हो अगर आंखों में पानी
हर पानी दर्द नही होता...
मौसम की बनावट से हर
तिर को दिल में दफनाया गया..
मौजूदगी में उसके उसने
मिट्टी तक ना डाली..
जख्मों पर छेड़कर मरहम
उसने... कब्र ये खोद डाली..!
कहा गया वो पानी..?
जो आंखों में कैद था...
मगरूर था...
तलाश में था..
बेसहारा किरणों का ये पंछी
आसमां जो ढूंढ रहा था...!
आसमां उसी का था..
अफसोस...
अगर तुम्हे उस्सेे
मोहोब्बत ना होती...