Image by Vinay R from Pixabay
ऐ.. रात मुझे ऐसा सुकुन ना दे
बारिशों में भी ऐसी बेपरवाह बारीश ना दे
जो अपने हातों से.. बरीशों की बुंदो को मेहसूस कर
कहीं दुर नांव में बैठी और पता चला हैं की
साथ में कोई भी नहीं।
अंधेरी रात में उजाला इतना की
चांद को देखू तो रात की फिक्र नहीं ।
मैं खुदमे ही खो रही हुं
कोई साथ नहीं... और बेखबर मैं
मुझे इसकी परवाह तक नहीं ।
वहीं नांव किनारे तक गई और वहीं रुकी रही...
जैसे आसमा में उड़ता तारा मेरेही तरफ आ रहा हों
और मुसकुराती मैं... मैंने कुछ मांगा ही नहीं।
खुदमें खोकर.. अपनी ही यादों को याद कर रहीं
पता चला की वो यादें अब हैं ही नहीं...
हैं तो बस यादों में...
उन्हें मेहसूस कर कभी हकीकत बना लेती हुं
कभी अपनी ही यादों की नांव
जहां मैं हुं...गुमनाम नहीं।
मैं हर रात बातें करती और वो केहेता कुछ भी नहीं...