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ज़िंदगी के कई मायने हैं ना...!
सबकी अपनी ही तलाश में हैं ज़िंदगी।
जो पाया ना हो उसे क्या खोना...
कभी कहीं किसि की हसी खिल जाती...
और आज नन्हि सी मुस्कान में कहीं खो ना जाए ज़िंदगी।
नन्हे से पैरो में... जब चलते तो आज़ाद थे इनके दायरे...
ना रात की फिक्र ,
ना सुबह की उलझने
बड़ो की सुलझी जिंदगी में कहीं उलझ ना जाएं ज़िंदगी।।
हर कोई खामोशी को दोस्त बनाएं अपनी यादों को याद कर रहें...
अच्छी यादों में रोता कोई, बुरी यादों में हसता कोई...
इन्ही यादों में याद बन कर ना रेह जाएं ज़िंदगी।
क, ख से लेकर अब हात कपकपाते कई ...
आँखों के ख़्वाब से लेकर अब आंखों में रहा ना कोई...
जब ज़िंदगी की ये डगर आ - जाएं
तो आंसु भी पाणी हो जाएं...
कहीं खो ना जाएं ज़िंदगी।।
पर उलझनों में सुलझे हर सवाल का नाम हैं ज़िंदगी...
कई मायने हैं ना...!
सबकी अपनी ही तलाश में हैं ज़िंदगी।
जैसे खिलखिलाती हसीं में, आज़ाद दायरो में, नई यादों को बनाने में, बुढ़ापे के बचपन में, रिश्तों के हर रिश्तों में, आपकी मुस्कान में बसी इसी मोहब्बत का नाम हैं ज़िन्दगी
आज़ाद हैं ज़िंदगी।।

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