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किताबों के पन्ने पर एहेससो की बारिश
जब पढ़ना चाहा तो एक खुला आसमां निकला...
जो शायद काले बादलों के बीच एक कोरा कागज़ निकला...
जिसमे बातें तो कई हैं, जख्मों पर मरहम लगाए वो जख्म भी कई हैं। 
कोशिश करती रहीं अन्न जख्मों को पढ़ने की... 
पर जब पन्ना पलटकर देखा तो... 
जख्म ना - जानें खुदको यू कुरेदने लगे...
देखा तो जख्म अब खुलने लगे। 
गुस्ताखी इनकी एक ना चली जब शायरों -
के काफिलों ने जख्म पर कलम की लकीरें बनाई...
जख्मों पर छेड़कर मरहम...
वो अब भरने लगे।
और ना जानें कब तलक किताबों के पन्नों पर
एहसासों की लकीरों ने फलक से
ज़मीन पर, यादों को नफ़रत, प्यार और ना -
जानें कितने एहसासों को एक नया सफ़र दिया।

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