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न आगे बढ़ने का रास्ता दिखा रहा है, न अपना इरादा बता रहा है
ए दिल तुझको क्या हुआ है ? क्यों इतना सता रहा है
तू क्यों अपने आगोश में रखा है अब रियाह करदे मुझको
के तेरी गुलामी करना अब मेरा तमाशा बना रहा है
अपनी बे बाकियों में न उलझा, ये कहके मैंने जब अदावत की
तब दिल ए नदां आशिकी ना छोड़ना का फैसला सुना रहा है
सर सब्ज़ ओ शादाब से दिल लगाना की कोशिश तो की मगर
मोहब्बत के नाम पर दिल एक ही शख्स का पता बता रहा है
क्या करूं इस दिल का, इसे कुछ कहूं भी तो कैसे नाज़
के दर्द ये देकर मरहम भी खुद ही लगा रहा है

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