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वो दर्द हमेशा बेदर्द सा क्यों हो जाता है,
जो बरसों से एक इंसान बस सहते चला जाता है?
क्यों बदन पर पड़े उन गहरे घावों को,
अक्सर प्यार का नाम दिया जाता है?

क्यों किसीकी लुटती हुई इज़्ज़त को,
उसके पाप का फ़ल माना जाता है?
और इस पाप का इंसाफ करने,
हमेशा समाज क्यों खड़ा हो जाता है?

क्यों कोई एक इंसान देवता ,
तो दूसरा तुच्छता की श्रेणी में रखा जाता है?
अगर ये करना सही है,
तो फिर सबका मालिक एक ही क्यों कहलाता है?

जबरदस्ती किसी के जिस्म का कारोबार कर के,
क्यों उसे ही धुतकारा जाता है?
खुदके घर की इज्ज़त को इज्ज़त,
और उसकी इज्ज़त को बाज़ारू समझा जाता है।

यहां कुछ इंसानों को उनके नाम से नहीं,
बल्कि मीठी,छक्का कह के पुकारा जाता है।
शरीर-रचना से व्यक्तिमत्व परखने का,
ऐसा मापदंड कौन बनाता है?

रोती सिर्फ औरतें हैं,
मर्द तो आसानी से सब सह जाता है।
मर्द हो तो भावुक मत होना,
क्योंकि ऐसा मर्द, नामर्द कहलाता है।

छोटे हो, आवाज़ मत उठाओ,
जो बोलें वो चुपचाप सुनते जाओ।
ऐसा बोल के क्यों कोई,
किसी आज़ाद परिंदे की आवाज दबाता है।

क्यों है ये दुनिया ऐसी,
जहां हर कोई एक दूसरे को कुचलना चाहता है?
यहां सुनना कोई नहीं चाहता,
बस अपनी सुनाना चाहता है।

दुनिया की यही रीत है और यही चलती आई है,
ये हर कोई मानता है।
यहाँ कोई इंसान बनना नहीं,
बस इंसान होने का ढोंग करना जानता है।

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