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ज़रा बिलखती फिर सँवरती सी तू ,
ज़रा खुद से प्यार कर के तो देख।
कभी बैठ खुद क़े साथ,
सहला ले कभी खुदको खुद के ही हाँथ,
प्यार भरी आखेँ कभी खुद पे भी सेंक ,
जरा खुद से प्यार कर के तो देख।
पता है मुझे की तेरे दिलकी बात कोई नही समझता,
और शायद समझना भी नहीं चाहता।
पर अगर तू भी ये न समझे,
तो ये भी कोई बात है।
और क्या तुझे भी लगता है कि,
तेरा स्त्री होना तेरे आस्तित्व पर दाग है?
क्या तेरा भी बचपना तुझसे छीना गया है?
या तेरा स्वाभिमान भी अब मर गया है।
दूसरों के लिए जीते जीते शायद
तेरा दिल भी अब डर गया है।
दिल डर गया है? किस बात से?
शायद खुदसे प्यार करने के लिए
या शायद खुदके लिए कुछ करने के लिए।
अरमान तो कई थे न तेरे?
उन्हें तूने कच्चे धागे से बांधा था ,
या समंदर के रेत पर लिखा था?
जो कि हवा आने के साथ ही बह गए।
और फिर तेरे जज्बात भी धरे के धरे रह गए।
अगर तेरा स्त्री होना अपराध है ना,
तो मै बस इतनी दुआ करूँगी की
तू अगले जनम इस धरती पर ही ना आए
तेरे ना होने से रहेंगे देख लेना यहाँ गम के साए।
मुझे लगता है की,
तेरी अहमियत बस इसलिए नही है
क्योंकि तू आत्मनिर्भर नही है।
पर बरसों से तूने ही तो सम्हाला है हमे,
ये बात भी तो सही है।
छोड़!सब जाने दे,
मैं ये बोल रही थी कि,
ज़रा खुदसे प्यार कर के तो देख।
दो पल खुदके साथ जी के तो देख।
कभी अपनी रूह को भी ठंडक देके देख।
क्योंकि जिस्म पर तो गहरे घाव होंगे तेरे,
जिसमे बसते होंगे सदियों के अंधेरे।

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