आधार तुम्हारा क्या ईश्वर, जिस पर तुम किस्मत लिखते हो?
तुम स्वयं लिखा करते हो या, कथनी चमचों की लिखते हो?
आधार तुम्हारा क्या ईश्वर.......
अधिकांश तुम्हारे भक्त प्रभो, निर्धन, निर्बल, लाचार रहें,
तेरी रचना सज्जन जन भी, क्यूँ दुर्जन के आरोप सहें ?
हम भक्तों को कुछ हिन्ट तो दो, तुम किन बातों पर पटते हो?
आधार तुम्हारा क्या ईश्वर.......
क्या कुछ भ्रष्टों ने मिल कर ही, ईश्वर तुम को बनवाया है?
किस्मत लिखने का यह ठेका, कुछ ले दे कर दिलवाया है,
था नहीं ज्ञात ईश्वर तुम भी, उन के टुकड़ों पर पलते हो।
आधार तुम्हारा क्या ईश्वर.......
सच, नैतिकता और मानवता, व्यवहार, आचरण आदि सभी,
पहले जो गुण के द्योतक थे, विपरीत अर्थ में, आज सभी,
युग परिवर्तन के साथ साथ, परिभाषा बदला करते हो?
आधार तुम्हारा क्या ईश्वर.......
हम भक्त तुम्हारे हैं ईश्वर, और अल्प हमारी गिनती है,
एक चांस हमें दे कर देखो, अंतिम इतनी सी विनती है,
ज्यादा व्यवहार, कुशल, सक्षम, तुम हमको भी पा सकते हो।
आधार तुम्हारा क्या ईश्वर.......
सच कह कर अपने जीवन में, आंधी, तूफ़ान बुलाये हैं,
पथभ्रष्ट पथिक न बन पाए, सत्मार्ग सदां अपनाए हैं,
झूठों की खातिर दुनिया में, सच का अवमूल्यन करते हो?
आधार तुम्हारा क्या ईश्वर.......
भक्तों की सेवा, पूजा को, क्यूँ तुम कलयुग में भूल गए?
उस ब्याज को तो मारो गोली, तुम मूल हड़प के बैठ गए,
चमचों के निर्णय पर तुम खुद, क्यूँ छाप अंगूठा रखते हो?
आधार तुम्हारा क्या ईश्वर.......
एक बार हमें भी अजमा लो, शायद उनसे अच्छे निकलें,
अरमान तुम्हारे बिकने के, कुछ ज्यादा पैसों में बिक लें,
है कीमत बहुत तुम्हारी तो, फिर क्यूँ सस्ते में बिकते हो?
आधार तुम्हारा क्या ईश्वर.......
स्पर्धा के इस कलयुग में, इतना न तुम अन्याय करो,
कल्याण तुम्हारा ही होगा, यदि कुछ हमपे विश्वास करो,
हम उनसे ज्यादा ही देंगे, क्यूँ नुक्सान स्वयं का करते हो?
आधार तुम्हारा क्या ईश्वर.......
युगयुग से तेरे भक्त हैं हम, प्रतिफल अपना अधिकार प्रभो,
अधिकार हमारा औरों को देकर, न हम पर अत्याचार करो,
कम नहीं समझना तुम हमको, न हरगिज यह कर सकते हो।
आधार तुम्हारा क्या ईश्वर.......
तुम नहीं समझना ये धमकी, है मात्र नहीं बन्दर घुड़की,
जो कहते हैं कडवा सच है, यह बात नहीं डेली गुड की,
दुनिया को ठगते मीठे बन, ना हमको यूँ ठग सकते हो।
आधार तुम्हारा क्या ईश्वर.......
शायद राजीव महोदय ने, हक हम भक्तों का मारा था,
बोफोर्स कमीशन प्रकरण से, भक्तों का पत्ता काटा था,
बदनाम हुए दरदर देखो, क्यूँ अनुकरण उन्हीं का करते हो?
आधार तुम्हारा क्या ईश्वर.......
सतयुग में श्रद्धा भक्ति से, तुम सम्मोहित हो जाते थे,
क्यूँ निष्फल होते अब सारे, जो कर्म तुम्हें तब भाते थे,
थ्री डब्लू की हम भक्तों से, कलयुग में आशा रखते हो?
आधार तुम्हारा क्या ईश्वर.......
क्यूँ तुमने सीधा पथ तज कर, उल्टा ही पथ अपनाया है?
क्यूँ तुमने अपनी गरिमा में, कलयुग का ग्रहण लगाया है?
सतयुग के अवगुण, कलयुग के, गुण में परिवर्तित करते हो?
आधार तुम्हारा क्या ईश्वर.......
आधार तुम्हारा क्या ईश्वर, जिस पर तुम किस्मत लिखते हो?
तुम स्वयं लिखा करते हो या, कथनी चमचों की लिखते हो?
आधार तुम्हारा क्या ईश्वर.......