लगता है वर्तमान में, हर वैवाहिक, पारिवारिक आयोजन,
आयोजक, प्रतिभागी के लिए है, रसूख, स्पर्धा का प्रयोजन,
और इसलिये आज तो, हर आयोजन का उद्देश्य भी यही है -
सिर्फ प्रदर्शन ! सिर्फ प्रदर्शन !! केवल और केवल प्रदर्शन !!!
आयोजक में दिखता अद्भुत, आडम्बर का भाव -
" मैं धनाढ्य सब से बडा, मेरा कितना यहाँ प्रभाव। “
लगता, आगन्तुक भी सारे, बस फैशन शो करने आये,
पल पल, नए नए स्टाइल बदलें, फैशन, वस्त्र दिखाये,
स्मार्ट फोन से जगह जगह होते, फोटो, वीडियो शूट,
कोई ‘इन्टरकोन्टीनेन्टल डिश’ चखे, कोई महंगे फ्रूट।
भर लेते हैं प्लेट, चखें, जब कोई अच्छी दिख जाय,
भरी प्लेट वह चुपके से तब, “ डस्टबीन “ में जाय,
मनपसन्द हर डिश यहां, सब ठूंस ठूंस कर खाये,
पर मलाल मन में रहे, डिशेस सब पूरी न चख पाये।
स्वीट्स, आइसक्रीम स्टाल्स पर, लोग पडें यूं टूट,
ज्यों अमरीकन माॅल्स में, “ थैंन्क्स गिविंग डे ” लूट !
अब हर कार्यक्रम के यहां, अलग अलग हों ‘थीम’,
खूब मनाते मस्तियां, इकले या बना स्वय॔ की टीम,
नाचें बच्चे, बूढे, युवक, युवतियां, पडतीं ‘लाइट बीम’,
सब बनीं अप्सरा घूमतीं, औ' कुछ बनीं हुईं खुद ‘मीम’।
बहुत हैं ऐसे, जिन के तन में, बसी है डायबिटीज,
खुश तो वो भी, मगर भरी है, उन के मन में खीज,
ललचातीं हैं सुन्दर, अच्छी, मीठी, स्वीट्स लजीज,
पत्नी रोके लाख, पर दबे ना, उन के मन की टीस।
रह रह गूंज रही है कानों में, पत्नी की ‘मौन’ ये चीख -
“ मत मिठास कोई लखना, चखना, तुम हो शुगर मरीज "
हो करवद्ध कहा पत्नी से - " मुझे करो ना इतना ‘टीज’ ",
वादा, नहीं चखूंगा, नहीं खाऊंगा, पर देखने दो प्लीज।"
धीरे से पत्नी मुस्काई, फिर आंखों आंखों में बात बताई -
" तेरी रग-रग से वाकिफ, तुम ठहरे बदमाश औ' ढीठ,
'शुगर फ्री' मिठाई घर में दूँगी, जिद ना करो तुम, प्लीज।”
मैं नजरों से बोला - " बेबी ! जल्दी वापस चलो ना, प्लीज।"
सोचो स्पर्धा के लिए प्रदर्शन, क्या ऐसी मजबूरी है ?
जो हर संसाधन की बर्वादी, करना बहुत जरूरी है,
आज विदेशों भी होती, जगह जगह यही चर्चा है,
मात्र दिखावे को भारत में, होता कितना खर्चा है।
माना खर्चा आप कर रहे, आप की ही धन दौलत है,
लेकिन इस आदत को छोडो, ये तो बहुत बुरी लत है,
स्वधन पर अधिकार आपका, पर संसाधन तो देश के हैं,
देशहित में संसाधन की बर्वादी, कैसे हम सह सकते हैं?
न्यायतन्त्र, नेतृत्व कहाँ है, या यहां कोई सरकार नहीं है -
“ संसाधन की बर्वादी करना, मूल भूत अधिकार नहीं है।”