आओ करीब बैठ के, दीदार कुछ करें,

आँखों में आँखें डाल के, इजहार कुछ करें।
आओ करीब बैठ के...

जानें कि क्या हैं हुश्न की, मदहोश शोखियाँ,
देखें कि चाहतीं हैं क्या, आँखों की सुर्खियाँ,
ला बे शुमार हुश्न को, बाहों के दरमियाँ,
महसूस कर सकें तेरी, साँसों की गर्मियां।
          इन दूरियों को आज चलो हम दफा करें।
आओ करीब बैठ के...

उम्मीद के दिए जो बुझे, जलने लग गए,
इन दूरियों के शूल बहुत चुभने लग गए,
आए जो तुम करीब तो यूँ धडकनें बढीं,
हम अपनी धडकनों को स्वयं सुनने लग गए।
जिन्दा बचे हैं आज भी, अचरज न कुछ करें।
आओ करीब बैठ के...

तन्हाइयों के नाग, हमें डसते ही रहे,
बेतावियों के दर्द औ’गम, बढ़ते ही रहे,
खुशियों की डोर मगर, तेरे हाथ में रही,
मजबूर अपने दिल से, तेरे पास ही रहे।
आंखों में तेरी डूब लें, जी जायें या मरें।
आओ करीब बैठ के...

मांगी मुराद पा कर जुबां, काठ हो गई,
बेतावियों की आग तुम्हें, पाकर खो गई,
करते बयां जज्बात, मगर, लब्ज न मिले,
मजबूरियां थीं प्यार की, पर लव नहीं हिले।
आँखों से आँखें प्यार का, इजहार खुद करें।
आओ करीब बैठ के...

नजदीकियां बढीं तो, जुबां बन्द हो गई,
पलकें झुकीं तो आंख, स्वतः बन्द हो गई,
जब दो दिलों की चाहतें, एकसार हो गईं,
अनुभूतियां तेरे प्यार की, आनन्द हो गईं।
अहसास ऐसे प्यार का, कैसे जुदा करें?
आओ करीब बैठ के...

आंखों की भाषा, चाहतें पहचानने लगीं,
बेवश बना के मन का कहा मानने लगीं,
कैसे विवेक शून्य हुआ, हम सोच न सके,
हठधर्मी अपने दिल कहा, टालने लगीं।
विद्रोह के सुरों को चलो, खत्म हम करें।

आओ करीब बैठ के, दीदार कुछ करें,
आँखों में आँखें डाल के, इजहार कुछ करें।
आओ करीब बैठ के...

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