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कुछ दिन पहले की बात है पत्नीजी की भतीजी सपरिवार ऑस्ट्रेलिया से पहली बार आने वाली थी। उसकी छोटी प्यारी सी बिटिया का नाम मायरा है। हम तो उसके साथ खेलने का प्लान बना रहे थे लेकिन हमारी पत्नी जी उनके स्वागत में बड़े बड़े प्लान बना रहीं थीं और नये नये व्यंजन बनाने की धुन में अपनी स्वादिष्ट व्यंजन वाली डायरी लेकर व्यस्त थीं । तभी मैंने अपनी आदत के अनुसार, बिना कुछ सोचे समझे, एक सच्ची बात क्या कह दी, जिसे सुनकर उन्होंने ना जाने क्या क्या सुना दिया, मैं लिख कर भी नहीं बता सकता। खैर, आप लोग पढ़ कर कमेंट में बताना, क्या वास्तव में मैंने कुछ गलत कहा था ?


सुन कर घर आएगी मायरा,
वृहद हुआ खुशियों का दायरा !

अब घर, आँगन है महका महका,
दर, दीवारों का कण कण चहका,
मन का कोना कोना महका,
अपनत्व, प्यार से बहका बहका,
शायद घोडा मुझे बनाये,
या फिर काँधों पर चढ़ जाये,
नाना कह ऊँगली को थामे,
इधर घुमाए, उधर घुमाए,
उस के आने से, मेरा भी,
बचपन फिर से लौट आएगा,
उस के जैसी बोली में ही,
तुतलाना मुझ को भायेगा।

तब से ही बुआ को देखो,
दर्द वो अपने भूल गई है,
नई 'डिशेस' की उठा डायरी,
'मीनू' में मशगूल हुई है,
फोन मिला कर पूंछा, बिटिया 
क्या खाते है, बता कुंवर जी,
और बता क्या तू खायेगी,
जरा बता नन्ही बिटिया को,
क्या क्या चीज़ पसंद आयेगी ?
मैंने देखा आने की सुन,
खुल गई उसके सुख की खिड़की,
पर पता नहीं, क्या खता की मैंने,
मुझे मिली गुस्सा मय झिडकी।

मैंने तो बस यही कहा था-
'अब अन्तर्राष्ट्रीय ‘डिश’ है खिचड़ी',
यही खिला देना उन सब को,
हम तुम भी खा लेंगे खिचड़ी।

बस मेरे इतना कहने से,
आई मुश्किल भरी घडी है,
चिमटा, बेलन उठा हाथ में,
यही गनीमत, दूर खड़ी है।

पर हम दोनों के जीवन में,
खुशियों की यह खबर बड़ी है,
और बिटियाओं के आने से,
खुशियों की अनवरत झड़ी है !


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