तुम भोले भाले, मेहनत कश, भूख मिटाते सेनानी,
तेरे हित से, रही खेलती, नीच सियासत मनमानी,
तुझ से ही जिन्दा हैं आदम, कल, सरहद के सेनानी,
तू जनजन का अन्नप्रदाता, तूने नहीं महत्ता पहचानी।
मोदी ने सोचा - 'किसान की, कृषि की आय दुगनी हो,
सूखा, पाला, मानसून की, मार ना उस को सहनी हो,
श्रम का प्रतिफल बेहतर पाए, हो स्वाभिमान, समृद्धि,
हर फसल के संग, कृषक की, सामर्थ में हो ज्यादा वृद्धि'।
इसी लक्ष्य को ले कर वह तो, इजराइल तक चला गया,
पर अपने, अपनों के लालच, से ही जिसको छला गया,
तुमको लत ही गलत डाल दी, पथ दिखलाया कर्जामाफ़ी,
पर बुद्धिहीन तू सोच रहा, “है मुफ्त में इतना ही काफी"।
इजराइल ने मरुथल में भी, शुष्क हवा से जल खींचा,
इस जल से उसने मरुथल में, अपनी फसलों को सींचा,
वो मरुथल में, जल बर्वादी, ना बिलकुल सह सकते हैं,
फसलें प्यासी नहीं रहें बस, वह उतना ही जल देते हैं।
यूँ वह थोड़ी कृषि भूमि से, बना खाद्यान्न का निर्यातक,
अधिक भूमि हम पर ज्यादा, पर हैं खाद्यान्न के आयातक,
वहां कृषक के पास हैं उन्नत, उत्तम कृषि सुविधा साधन,
तूने तो बेचा, गिरवी रक्खा है, अपना हक, तन, मन, धन।
कृषि के उन्नत साधन देते, तो तू सामर्थ्यवान हुआ होता,
तब तू कर्जा कभी न लेता, खुद धनाड्य इतना होता,
गाँव में अच्छी सुविधाओं का, हर सपना पूरा होता,
अपनी लाचारी, किस्मत का, रोना कभी नहीं रोता।
धन अर्जन, रोजी रोटी को, नहीं भटकते यह बच्चे,
तेरे संग, घर स्वर्ग में रहते, सब के दिन होते अच्छे,
उज्जवल करले तू भविष्य, अपना, अपने बच्चों का,
साथ छोड़ झूठे, लुच्चों का, साथ ले कर्मठ, सच्चों का।
वक़्त के रहते कृषि के साधन, तेरा हक है, हक से मांग,
नहीं भिखारी, मेहनतकश है, नहीं फसा दलदल में टांग,
वरना माफ़ी के दल दल में, तू खुद व खुद धंस जायेगा,
और सियासी सितमगार हर, तुझ पर हँसता जायेगा।
सब किसान से यही गुजारिश, सोचें, समझें करें मनन,
जो तेरे हक, अधिकारों का, कर ना पाए कोई हनन,
अन्न प्रदाता तू जन जन का, स्वाभिमान से जीना सीख,
हो न निकम्मी तेरी पीढी, जो मांग मांग के खाये भीख।