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हर व्यक्ति की यह स्वाभाविक मानसिकता होती है कि वह अपने अर्जित अनुभव से कहीं ज्यादा और बेहतर अपनी नई पीढी को दे । मैंने कभी अपने अम्मा-बाबा को नहीं देखा, उनके अगाध लाड दुलार का अनुभव भी नहीं । नहीं जानता उस अपनत्व, प्यार की सीमा, परिधि, आदि और अन्त क्या है? इस अनुभव विहीन अवस्था में नहीं मालूम मैं अपने नन्हें नन्हें बच्चों को उनके हिस्से का वह सच्चा प्यार, अपनत्व, लाड, दुलार, जिसके वे निसन्देह अधिकारी हैं, देने में सक्षम और समर्थ रह पाया या नहीं । अनदेखे अपनों का वियोग किस प्रकार मन को व्यथित कर सकता है, ऐसा विलक्षण अनुभव इससे पूर्व कभी नहीं हुआ । अचानक श्राद्ध के दिनों में, यह प्रश्न मेरे अन्त: करण को विदीर्ण कर गया और इसी भाव को तूलिका के माध्यम से, शब्दों के अभाव में भी, आप सब तक पहुॅचाने का एक असफल प्रयास कर रहा हूॅ ।
आज अचानक, मेरे मन में, प्रश्न यह क्यूॅ, कर आया,
बाबा जैसा प्यार, क्या सच्चा, इन बच्चों को दे पाया?
नहीं सुना बाबा कैसे थे और, न कभी भी फोटो देखा,
अपनत्व, प्यार, गुस्सा, न देखे, ना माथे के बल, रेखा,
कैसे बेहतर, ज्यादा देता, जो ना देखा, ना पाया।
बाबा जैसा प्यार, क्या सच्चा, इन बच्चों को दे पाया?
मैं बाबा के लाड दुलार की, सीमा, परिधि न जानूॅ,
कोई बता दे कैसे उस का, आदि, अन्त पहचानूॅ?
‘बच्चों का मन खुश हो’, ऐसी युक्ति समझ न पाया।
बाबा जैसा प्यार, क्या सच्चा, इन बच्चों को दे पाया?
सर्वोत्तम इनको सब कुछ दूॅ, जीवन सफल बनाऊॅ,
कैसे मैं, मन इच्छा, करनी में, सामंजस्य बिठाऊॅ?
मन पीडा का शमन करे जो, वह समाधान ना पाया।
बाबा जैसा प्यार, क्या सच्चा, इन बच्चों को दे पाया?
हर पूर्वज ने हमें दिया अनवरत, सुविधा संपन्न सुकून,
रखा है कायम नवपीढ़ी ने, बेहतर ज्यादा जोश जुनून,
स्वसंस्कृति, संस्कार का जिम्मा, अबतक खूब निभाया।
बाबा जैसा प्यार, क्या सच्चा, इन बच्चों को दे पाया?
देखे, अनदेखे उन पूर्वजों का, मैं आभार जताऊं,
श्रद्धा से, श्राद्ध परम्परा से, आशीष उन्हीं के पाऊं,
आशीष निहित ऊर्जा शक्ति ने, मार्ग हमें दिखलाया।
बाबा जैसा प्यार, क्या सच्चा, इन बच्चों को दे पाया?
आज अचानक, मेरे मन में, प्रश्न यह क्यूॅ, कर आया,
बाबा जैसा प्यार, क्या सच्चा, इन बच्चों को दे पाया?