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बच्चों के संग सुविधा है पर…..
वैसे तो, अपने बच्चों के, संग रहने में सुविधा है,
पर मेरे व्याकुल मन में, कुछ असमंजस, दुविधा है,
नव पीढ़ी में, वृद्धों के प्रति, ना कोई आदर, श्रद्धा है,
अगर हुआ व्यवहार उपेक्षित, होनी बहुत असुविधा है !
  वैसे तो अपने बच्चों के………
हम वृद्धों के भावुक मन सोचें, बच्चों के ही संग रह लें,
दिल समझाए बेहतर होगा, दूरी का कुछ दुख सह लें,
दूर रहें अपनत्व, प्यार कुछ, खुद व खुद बढ़ जाता है,
संग रहें तो एक न एक दिन, कुछ खटास पड जाता है ।
           इसीलिए मेरे इस मन में, भय, असमंजस, दुविधा है ।
वैसे तो अपने बच्चों के………
हम तो ठहरे ढलते सूरज, हर पल घटती शक्ति है,
अब अपने हाथों में केवल, करना ईश्वर भक्ति है,
भक्ति से खुश होकर शायद, वह कोई ऐसी युक्ति दे,
चलते, फिरते हाथ पाँव हों, जब जीवन से मुक्ति दे ।
           “अंतिम क्षण तक बोझ बनें ना”, अब यह केवल इच्छा है ।
वैसे तो अपने बच्चों के………
मुझ से पहले उसे उठाना, अब इच्छा मेरी इतनी है,
दो दिन बाद मुझ उठवाना, हाथ जोड़ कर विनती है,
देखो नहीं जुदाई सह पायेंगे, चाहे मैं हूँ, या वह हो,
बार बार आने जाने का, बच्चों को भी कष्ट न हो ।
            एक बार में सब कुछ निबटे, इस में सब को सुविधा है ।
वैसे तो अपने बच्चों के………
अन्तिम यात्रा उसे स्वयं के, कन्धों पर ही करवाऊं,
बाद मेरे कैसे जीएगी, यही सोच सोच कर घबराऊं ,
बच्चों पर भी वक्त ना होगा, मन की कहने तरसेगी,
बाद मेरे अपनी झल्लाहट, लेकर किस पर बरसेगी ?
           अपनत्व भरा व्यवहार मिलेगा, आशंका और दुविधा है ।
वैसे तो अपने बच्चों के………

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