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कल की नारी की व्यथा

हर जुल्म उनका कबूल है, चाहे डांट लें, फटकार लें,
ना छोड़ कर चल दें कहीं, यही रोज़ रब से दुआ करूँ।

बच्चों की खातिर, संस्कार वश, मैं बहुत मजबूर हूँ,
वरना जिन्दगी से मैं तुझे, बस एक पल में दफा करूं।

युवा नारी की प्रथा

मैं पढ़ी लिखी, आधुनिक, अधिकार अपने हूँ जानती,
हम तुम बराबर हैं तो फिर, अन्याय तेरे मैं क्यूँ सहूं?

मुझे देखना है, और सोचना है, कि है तेरी औकात क्या,
जो ना खर्च मेरा उठा सके, भला साथ उसके मैं क्यूँ रहूँ?

कार बंगला अपना दिखा, क्रेडिट कार्ड की लिमिट बता,
तेरे साथ रहना है या नहीं, तभी, कोई निर्णय मैं ले सकूँ।

ये शादी, प्यार, व्यार, आबरू, सब दकियानूसी बात हैं,
जिससे मन करे, उससे मिलूं, रिश्तों में क्यूँ बंध के रहूँ?

मुझे लिव इन पार्टनर चाहिए, पति और बच्चे कुछ नहीं,
मैं सक्षम भी हूँ, समर्थ भी, फिर गुलाम बनकर क्यूँ रहूँ?

मैं अपने सुख की मालकिन, मेरी मर्जी जब तक साथ हूँ,
भर जाय मन, जिस दिन मेरा, तुझे जिंदगी से दफा करूँ।

बस हैं यही शर्तें मेरी, सोच ले, मन्जूर हों तो बात कर,
क्या महूरत देखना, हां कहे तो, मैं साथ तेरे अभी चलूं।

अब कमजोर, अबला मत समझ, मैं बहुत सशक्त हूं,
ये तीन पांच न मुझसे कर, तुझे दिन में तारे दिखा सकूं।

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