बहू चाहिए हम को ऐसी, मुझको अपना पिता मान ले ,
और सास को अन्तःमन से, अपनी माता, सखी जान ले।

तन से तो सुन्दर हो लेकिन, मन से ज्यादा ही सुन्दर हो,
धर्म, कर्म, संस्कार जैन से, बेटे जैसी पढ़ी लिखी हो,
त्याग, समर्पण, अपनत्व, प्यार, ममता गुण की खान रहे जो,
सहयोगी बन, सम्बल बन कर, आदर और सम्मान करे जो।

निष्ठा, वफ़ा प्यार के बदले, दिल आँखों में उसे रखेगा,
मेरा बेटा रुकमणि को ही, राधा जितना प्यार करेगा,
प्यार करे छोटे बेटे से, बहना, भाभी, माँ सी बन कर,
अगर करे गलती समझाए, न माने तो डांटे जम कर।

नहीं अपेक्षा रखते उस से, छुए चरण, बात हर माने,
अपने मात पिता की बातें, केवल ब्रह्म वाक्य ही माने,
आंखमूंद कर चलने वाली, इस घर के अनुकूल नहीं है,
निर्णय में सहयोग करे जो, समझदार परिपक़्व वही है।

इस घर के हर निर्णय में जो, खुल कर अपनी राय बता दे,
नई पीढ़ी का सोच भला क्या, इस से अवगत हमें करा दे,
सोच पुराने, नए सोच का, कुछ ऐसा अनुपम मिश्रण हो,
परिलक्षित सहयोग, प्रेम हो, नहीं तनिक सा भी घर्षण हो।

इस घर की तो नींव टिकी है, त्याग, समर्पण, अपनत्व प्यार पर,
हर निर्णय होता आया है, सब की सहमति और राय पर,
नहीं किसी की वीटो पावर , नहीं किसी की जीरो पॉवर,
छोटा बड़ा नहीं कोई भी, सब की पॉवर, यहाँ बराबर।

बहू रही यदि बेटी बन कर, बेटी का भी प्यार मिलेगा,
दुनिया में इस से बेहतर ना, उस को घर संसार मिलेगा,
बहू रूप में बेटी पा कर, अपनी बांछें खिल जायेंगी,
नहीं विदाई का दुख होगा, खुशियाँ ही खुशियाँ आयेंगी।

धन का लालच नहीं जरा भी, घर की खुशियों के हम लोभी,
ईश्वर पर सब छोड़ दिया है, दे दे उस की मर्जी जो भी,
उस की इच्छा पर निर्भय हैं, ये अपनी आँखों के सपने,
मिल कर, घर उपवन में खेलें, प्रेम भाव से सारे अपने।

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