बैंक ग्राहक -
"बहुत डिपाजिट दे सकता पर, मेरा भी कुछ काम करोगे?
सुबह शाम मेरे घर आकर, क्या तुम हुक्का, जाम भरोगे?
पहले फ़ोन और बिजली का, बिल मैनेजर खुद भरता था,
पानी की किल्लत होती तो, सुबह शाम पानी भरता था!

उसने की जब आना कानी, मैंने उससे कुट्टी कर ली,
अगले दिन ही देख बैंक ने, मैनेजर की छुट्टी कर दी,
अब बेचारा अपने घर से, देखो कोसों दूर पड़ा है,
और मेरी सेवा भक्ति में, एक टांग पर नया खड़ा है!

आँखमूँद कर नव मैनेजर, हर मांग मेरी पूरी करता है,
पूंछ हिलाता आगे पीछे, मुझको, ना कहने से डरता है,
नियम भूलकर वो बेचारा, जो मैं कहता, वो कर देता है,
कभी आकाओं की नाराजी का, नहीं टेंशन वह लेता है!

श्रध्धा से अभिभूत हुआ तो, फ्री में रहने रूम दे दिया,
ईश्वर का परसाद बता कर, खाने को दो जून दे दिया,
अब जब मैं सम्मुख पड जाता, दौड़ के मेरे चरण छूता है,
स्वाभिमान को भूल ही जाता, जहाँ डिपाजिट का जूता है!

मुझे देखकर, डर के मारे, चरणों में ही गिर पड़ता है,
शब्दों में आगे और पीछे, Sir, Sir के मोती जड़ता है,
उसका मान बचे या जाए, मुझको फर्क नहीं पड़ता है,
आने वाले मैनेजर को, पिछला बस यह समझाता है-
“इन से पंगा लेने वाला, अगले दिन ही नप जाता है,
स्वाभिमान जो ज़रा दिखाए, उसका पत्ता कट जाता है!”

और सुनो ध्यान से -
लोग वही भाते हैं मुझ को, जो ना हों बस लोभी, ढोंगी,
मुझे लॉकर भी कुछ देने होंगे, पर मेरी कुछ शर्तें होंगी-
लॉकर नहीं नाम पर लूँगा, स्टाम्प पे साइन नहीं करूंगा,
और रात में छुप छुप कर ही, जब चाहे लॉकर खोलूँगा!

कई करोड़ और दे सकता, यदि ऐसे लाकर दिलवा दो,
बिना लिखे ही मुझे बैंक के, लाकर की चाबी दिलवा दो,
मैं जिसका ना चाहूँ उसका, कभी नहीं खाता खुलवाना,
सरकारी ऋण, खूब बैंक से, मेरे चमचों को दिलवाना!

चलो वादा करो मेरे खातों पर, टी डी एस नहीं काटोगे,
और बिन मेरी परमीशन बन्धु, कोई लोन नहीं बांटोगे,
यदि मजबूरी टैक्स काटना, तो फिर इतना काम कराना,
लोन कमीशन लेकर खुद ही, हाथ मेरे चुपचाप थमाना!

शर्तें हों मंजूर तो बोलो, और कितने का चेक कटा दूँ?
अभी बताओ, तुम्हें यहीं पर, कितने बोरे नोट थमा दूँ?
सुन कर मेरी इन शर्तों को, क्यों मुर्दों से मौन पड़े हैं,
निकल यहाँ से, मेरे द्वारे, लगा के लाइन बहुत खड़े हैं!“

बैंक शाखा प्रबन्धक -
" काले धन्धों का काला धन, देखो अपने पास ही रक्खो,
मेरे पूज्यनीय ग्राहक तुम, खुदा वास्ते मुझ को वख्शो,
मेरे बन्धु ! इन शर्तों पर तो, मैं ना कोई काम करूंगा,
नियमों को भूल बताओ, देशद्रोह का काम करूंगा?

नहीं सुना है मैंने कुछ भी, जो कुछ भी तुमने बोला है,
देश द्रोह का काला चिठ्ठा, मित्र यहाँ तुम ने खोला है,
अगर सत्य यह बोला मैंने, शायद बैंक नहीं छोड़ेगी,
और बैंक ने छोड़ दिया तो, ई डी, पुलिस बहुत तोड़ेगी!

"बैंक मैनेजर का जॉब रहा यूँ - 'इत कुंआ उत खाई',
तुम क्या जानो, कैसे कैसे, हम ने अपनी जान बचाई?
निर्दोषों के बल पर खा गये, कितने डब्ल्यू, दूध, मलाई,
कितने सिद्धहस्त भ्रष्ट, पतित संग, हमने अपनी उम्र बिताई।"

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