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देश के कुछ हिस्सों में, होते रहते हैं पुनः चुनाव,
सुन चुनाव उद्घोषणा, देखिये होता यही प्रभाव -
लगता दीखने हर नेता में, जनता हित का भाव,
अन्धे, बहरे, भ्रष्ट, दुष्ट के, मन जागृत सद् भाव !

शेर खाल में छिपे भेडिये कहें, हमें ही देना वोट,
सब्जबाग़ दिखा, झूठे वादे कर, सदा मांगते वोट,
स्वाभिमान तज, तेरे पैरों में, आज रहे जो लोट,
जीत गए तो फिर छीनेंगे, तेरे ही हित और रोट !

दुश्मन से भी गठबंधन क्योंकि, है नीयत में खोट.
तुष्टि करण का बजा झुनझुना, खूब जुटाते वोट,
मुफ्त मोबाइल, लैपटॉप, कुकर, घी, मदिरा, नोट,
तरह तरह के लालच देकर, फिट करते सब गोट !

अबतक करते ही आये हैं, खूब जी भर लूट खसोट
हर बार ख़ुशी दम तोड़ चुकी है, मनवा रहा कचोट,
अब तो अपने बच्चों को भी, करने लगे ' प्रोमोट ',
तुझको फिर भूलेंगे पांच साल को, लेके तेरा वोट !

तुम्हें सोच समझकर ही अब देना है अपना वोट,
वोट कुल्हाड़ी से मत कर लेना, स्व पैरों पर चोट,
भूल धर्म, जाति, आरक्षण, देशहित करो 'प्रोमोट',
खंड खंड न भारत होवे, कभी लगे ना ऐसी चोट !

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