कभी कभी छोटी से बात,
भ्रान्ति के साथ,
रोचक प्रसंग बन जाती है,
और हमें लिखने के लिए,
सामिग्री मिल जाती है।
आता है याद सा,
ऐसा इक हादसा,
शनिवार का दिन था,
बारह बजे थे,
हमारे एक मित्र,
पत्नी की सख्त हिदायत को,
मन ही मन बार बार,
दोहरा रहे थे -
“आज घर लेकर जानी है हल्दी “,
शायद इसीलिए उनको थी,
थोड़ी सी जल्दी।

अतः वो खुद ही जगह जगह से,
वाउचर बटोर रहे थे,
और चपरासी को,
सप्लीमेंटरी के लिए खदेड़ रहे थे।

इधर ये मित्र,
वाउचरों के खोए पड़े थे,
उधर एक नव दम्पत्ति,
उनके काउंटर पर,
बेवश से खड़े थे।
ग्राहक ने धीरे से पुकारा,
मित्र ने थोडा ऊपर निहारा,
हाथ में दीं पास बुक दिखाई,
तो बोले भाई -
“पड़ेगा छोड़ के जाना,
कल रविवार है,
परसों ले जाना।”
ग्राहक ने पुनः,
अपनी बात दोहराई,
तो हमारे मित्र,
और भी विनम्र होकर बोले -
“भाई, कह तो दिया छोड़ जाओ,
यहाँ नहीं तो,
पीछे अफसर के पास छोड़ जाओ.
इसमें आप का क्या जाता है,
तसल्ली से काम अच्छा हो जाता है,
परसों आयेंगे,
एंट्री पूरी पायेंगे।

ऐसा ही यहाँ का रूल है,
आप नहीं जानते,
ये आपकी भूल है।”

इतना सुनते ही,
सज्जन हुए लाल पीले,
मित्र का गला थाम,
चीखते हुए बोले -
“ तुम बहरे ही नहीं,
बेशर्म भी बड़े हो,
लगता है पूरे के पूरे,
चिकने घड़े हो।
अरे ! रखने की बात,
भूल जाओगे,
नौकरी छोड़ कर,
भागते नजर आओगे.
हम घन्टे भर से कह रहे हैं -
'बीबी का अकाउंट खुलवाना है',
आप रूल बताते हैं कि - "छोड़ के जाना है।”

अकाउंटेंट महोदय ने तुरन्त,
नव दम्पत्ति को,
अपने पास बुलाया,
एक एक गिलास,
ठण्डा पानी पिलवाया,
तुरन्त उनका काम कर,
मित्र को अपने पास बुलवाया।

वैसे यह मित्र सेहत से,
भले चंगे थे,
पर सिर से बहुत गंजे थे,
चूंकि वक्त की नजाकत को,
भांप रहे थे,
अतः रह रह कर,
थोडा कांप रहे थे,
करवद्ध हो कर कहने लगे -
“माफ़ करना सा'ब,
हम तो समझे थे,
पास बुक को पूरा कराना है,
तभी तो कहा था -
छोड़ के जाना है।”

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