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क्रिया कर्म के भ्रमजालों में, कैद होकर भी क्या जीना,
कुछ महापुण्य के कर्म संजोकर, गर्वित होता है सीना,
थी अमर आत्मा, अमर रहेगी, तन ने ही मरना, जीना,
पुण्यार्जन से जन्मों तक, ना पड़े मुझे दुख संग जीना ।
ये सच हो, न हो, पर निश्चित, चैन सकून से जी लेंगे !
खुश हूँ, कुछ तो अंग हमारे, हम से ज्यादा जी लेंगे ! !
वक्त होगा जब अपना पूरा, साँस रुकेगी, धड़कन भी,
निष्क्रिय पडा हुआ तन होगा,आस मिटेगी, फडकन भी,
और भरी जवानी में जिन के भी, अंग अगर नाकाम हुए,
इस मृतकाया के स्वस्थ अंग तब,वजह बनें नवजीवन की ।
खुश हूँ, कुछ तो अंग हमारे, हम से ज्यादा जी लेंगे !
कुछ को जीवन दान मिलेगा, कुछ की दुनियां हो रोशन,
उन को गुर्दे, जिगर मिलेंगे, इनको नवदिल की धड़कन,
आओ जीते जी इस तन का, हम स्व इच्छा से दान करें,
देह दान या अंग दान कर, कुछ महापुण्य के काम करें ।
खुश हूँ, कुछ तो अंग हमारे, हम से ज्यादा जी लेंगे !
कोई अपने अस्थि पंजर से ही, करे पढाई, सीखेगा,
फिर तो अपना हर अंग ही, पर हित करता दीखेगा,
नहीं करिश्मा, कर्म अनैतिक,नहीं स्वार्थ की हैं बातें,
फिर मानव अंगों के अभाव में,कोई न मरता दीखेगा ।
खुश हूँ, कुछ तो अंग हमारे, हम से ज्यादा जी लेंगे !
अपना तो उद्देश्य यही है, जग हित में कुछ कर पायें,
मरके भी कुछ लोगों के, दुख दर्द हरें, खुश कर पायें,
इस तन की अनमोल धरोहर, उन्हें समर्पित कर जायें,
अलग अलग तन में अपने अंग, पुनर्जन्म लें, जी पायें ।
खुश हूँ, कुछ तो अंग हमारे, हम से ज्यादा जी लेंगे !
आओ ऐसी मुहिम चलायें, हर इन्सा तन का दान करे,
क्रिया कर्म की धर्म रुढियों, पर ना कोई विश्वास करे,
मानव का मानवता के प्रति,अन्य कोई अच्छा धर्म नहीं,
देहदान, अंगदान सा उत्तम, अन्य कोई दूजा कर्म नहीं ।
खुश हूँ, कुछ तो अंग हमारे, हम से ज्यादा जी लेंगे !
अगले भव में, पुण्यकर्म से, हम सुख से ही जी लेंगे !
खुश हूँ, कुछ तो अंग हमारे, हम से ज्यादा जी लेंगे !!