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ए कृषक ! मान भी जा, इन की बातों पे ना जा,
यूँ ना सडकों पे उतर, फैलाए भ्रम से ना डर ,
एक दो साल ठहर, देख फिर इस का असर !
ए कृषक ! मान भी जा, इन की बातों पे ना जा….

मोदी जी ने कसम ये खाई है - “दुगनी करनी कृषक कमाई है,
ये भी खुशहाल हों, समृद्ध रहें, इनके सम्मान, स्वाभिमान रहें “!
ए कृषक ! मान भी जा, इन की बातों पे ना जा.....

तेरा हित मोदी का जूनून है ये, समृद्धि देने वाले क़ानून हैं ये,
गठबंधन दलालों का पुराना है, इन के चंगुल से ही बचाना है !
ए कृषक ! मान भी जा, इन की बातों पे ना जा.....

अब न कमीशन, बिचौलिए होंगे, सौदे सीधे अब ग्राहको से होंगे,
मिल के पिच्चासी पैसे खाते थे, तेरे हाथों में सिर्फ पन्द्रह आते थे !
ए कृषक ! मान भी जा, इन की बातों पे ना जा.....

अन्नदाता अब न लुटने पायेगा, उसका हक कोई खा ना पायेगा,
अच्छी कीमत पर फसल बेचेंगे, सीधे बैंक खाते में पैसे पहुंचेंगे !
ए कृषक ! मान भी जा, इन की बातों पे ना जा.....

सोच, कृषि क़ानून से विरोध जो है, फिर मोबाइल टावर तोड़ते क्यूँ हैं ?
शाहीनबाग़, जेएनयू वाले क्यूँ हैं ?, देशद्रोही नारे यहाँ गूंजते क्यूँ हैं ?
ए कृषक ! मान भी जा, इन की बातों पे ना जा......

फ्री की सुविधाएँ कौन देता है, क्या है उद्देश्य, कौन प्रणेता है,
आज सुविधाएं देते मतलब से, कल ये लूटेंगे तुमको जी भरके !
ए कृषक ! मान भी जा, इन की बातों पे ना जा.....

धन्धे चौपट ही हो रहे जिनके, बिछाए षड्यंत्र, जाल सब उनके,
उन की बातों में जो तू आएगा, कोई तुझ को बचा न पायेगा !
ए कृषक ! मान भी जा, इन की बातों पे ना जा.....

तुमने जिन को गले लगाया है, उन ने सम्मान तेरा गिराया है,
बदनाम देश को कराया है, तुम्हें देशद्रोह जाल में फंसाया है !
ए कृषक ! मान भी जा, इन की बातों पे ना जा.....

लाल किले को जो ज़ख्म दे बैठे, वे कलंक, दाग अब धुलें कैसे ?
अपमान तिरंगे का हुआ कैसे ? तू ही बतला दे, हम सहे कैसे ?
ए कृषक ! मान भी जा, इन की बातों पे ना जा.....

ये कृषि सुधारों की बात करते थे, 'मेनीफैस्टो' में खुद के लिखते थे,
वही सुधार जब ये मोदी लाये हैं, आज क्यूँ फिर गदर मचाये हैं ?
ए कृषक ! मान भी जा, इन की बातों पे ना जा......

ये प्रश्न जरा इन से पूंछ तो ले, दोगले पन इन के जान बूझ तो ले,
कल जो अच्छा था, अब बुरा कैसे, सोच आज भी तू गरीब है कैसे ?
ए कृषक ! मान भी जा, इन की बातों पे ना जा.....

विश्वास मोदी पर ज़रा कर ले, अपना हित कुछ परख तो ले
इनके झांसे में देखो मत आओ, वापस अपने अपने घर जाओ !
ए कृषक ! मान भी जा, इन की बातों पे ना जा.....

आज इकठ्ठे जो तेरे साथ खड़े, सत्तर वर्षों से, ये हितैषी थे बड़े,
‘ गरीबी हटाओ ’, नारे थे बड़े, तुम ही क्यूँ रह गए गरीबी में गढ़े ?
ए कृषक ! मान भी जा, इन की बातों पे ना जा.....

सदियों जिनको हितैषी माना है, उन का इतिहास यह पुराना है,
जिन पे ना कोई काम, धन्धा है, फिरभी व्यापक बड़ा खजाना है !
ए कृषक ! मान भी जा, इन की बातों पे ना जा.....

कानून नए एक साल चलने दो, षड्यंत्र, भ्रमजाल सारे मिटने दो
बनो मजदूर मत दिहाड़ी के, पावं काटो न खुद कुल्हाड़ी से !
ए कृषक ! मान भी जा, इन की बातों पे ना जा.....

सुनो गद्दारों, देश के दुश्मन, लूटते तुम रहे किसान का धन,
लूटना अब कृषक को बन्द करो, अन्नदाता है कुछ तो शर्म करो !.
ए कृषक ! मान भी जा, इन की बातों पे ना जा.....

इनको खेतों में काम करने दो, खेत, खलिहान अपने भरने दो .
आत्म निर्भर इन्हें भी बनने दो, मान, समृद्धि इनको मिलने दो !
ए कृषक ! मान भी जा, इन की बातों पे ना जा.....

देश टूटे ना, कुछ प्रबन्ध करो, देशद्रोही हैं उन को बन्द करो,
“ देशद्रोही, गद्दार कभी सुधरेंगे “, ऐसी उम्मीद रखना बन्द करो !
ए कृषक ! मान भी जा, इन की बातों पे ना जा,

यूँ न सडकों पे उतर, खुद पे न ढा जुल्म, कहर,
एक दो साल ठहर, देख लेगा फिर इसका असर
इस का भी देख असर, एक दो साल ठहर
ए कृषक ! मान भी जा, इन की बातों पे ना जा.....

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