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मन की बातें मन ही जाने, तन की बातें तन ही जाने,
आँखों की चाहत दुनियां में, आँखें ही बेहतर पहचाने,
हमउम्र दिलों की धड़कन को, हमउम्र समझते अपनाते,
बूढी आँखों के सपनों को, सब " यंग " ह्रदय ही ठुकराते।
यह जीवन का कड़वा सच है, 'जनरेशन गैप' कहें जिसको,
मत हो उदास, उद्दिग्न न हो, इसे सहज भाव से अपना लो ।

बचपन यह सोचा करता है, हम इन वृद्धों को बदल सकें,
और वृद्ध अवस्था कहती है, हम इन बच्चों को बदल सकें,
पर, ना वह बदला, न हम बदले, ना वह झूठा, न हम झूठे,
अपने अपने अनुभव से ही, हम सब का सोच बदलता है।
ये ही तो है पीढ़ी अन्तर, जो दोनों से नहीं सम्हलता है,
ये ही विकास की क्रिया है, और काल चक्र यूँ चलता है।
जैसे यह चलता, चलने दो, कुछ दोष नहीं अपनों को दो,
मत हो उदास, उद्दिग्न न हो, इसे सहज भाव से अपना लो ।

अनमोल धरोहर जीवन की, जो हर जीवन की पूँजी है,
जिसकी सार्थकता में निश्चित, निहित सफलता कुंजी है,
दो चार पुराने अनुभव ही, यदि तुम जीवन में अपना लो,
दिन दूर नहीं होगा तुमसे, जब संसार तेरा अनुयायी हो।

"वृद्धों के इन उपदेशों को, मैं मानूँ भी तो क्यों मानूँ ?
मेरा मन क्या, कैसे चाहे, मैं भली भांति ही पहचानूँ ?
तुम जा कर बैठो कोने में, मेरे कामों में विघ्न ना दो । "
मत हो उदास, उद्दिग्न न हो, इसे सहज भाव से अपना लो ।

भर करके निराशायें मन में, कुण्ठा ह्रदय में मत पालो,
ले कर तनाव इन बातों का, मत बहुत अपेक्षायें पालो,
उनका भी हक़, अपना जीवन, वह जैसे चाहें वैसे जीयें,
क्यूँ वृद्धों के आदेशों के, विषजाम सुबह औ' शाम पीयें,
कर्तव्य किया हम ने पूरा, जीवन यापन में सक्षम अब,
निर्णय जीवन के लेने में, दो राय इन्हें यदि मांगें जब,
गलती भी करेंगे, सीखेंगे, ये पछताते हैं, पछताने दो,
जब ऐसे भी अवसर आयें, तो ध्यान नहीं कुछ इन पर दो।
जब आयें तेरे पास कभी, तब ठीक सलाहें इन को दो,
मत हो उदास, उद्दिग्न न हो, इसे सहज भाव से अपना लो ।

हमने भी तो यही किया था, अब उनको ना गलत कहो,
मात पिता ने सहा था जैसे, बस वैसे ही अब आप सहो।

यह जीवन का कड़वा सच है, 'जनरेशन गैप' कहें जिसको,
मत हो उदास, उद्दिग्न न हो, इसे सहज भाव से अपना लो ।

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