हम बात हिन्दी में करें तो, सोचते हैं लोग अब,
देखते हैं, हेय दृष्टि से, इंगलिश भाषी लोग सब,
इंगलिश को ज्यादा महत्ता, दे रहे हों लोग जब,
अपमान सा महसूस करते, हिन्दी भाषी लोग तब।
पीढियों की दासता, क्या रक्त में घुलमिल गई है?
अंग्रेज बनने की प्रवृत्ति, जीन्स के संग बंध गई?
अपनी भाषा, संस्कृति अब, हाशिये तक आ गई है,
यह विदेशी भूख, चाहत, हर धरोहर खा गई है।
आइये हम साथ मिलकर, अस्तित्व हिन्दी का बचा लें,
अपनी माॅ की इस जुवां को, आज कटने से बचा लें,
क्यूं कलंकित कर रहे हो, ये देश गौरव की विरासत,
ये बचा कर, वंशजों के, धर्म ही हम कुछ निभा लें।
बैर इंगलिश से नहीं है, पर आप सबसे यही आशा,
हिन्दी भारतवासियों की, अंग्रेजी जग संपर्क भाषा,
सीखना, उपयोग करना, दोनों जरूरी देश हित में,
एक यदि त्यागी जरा भी, तो दूसरी भी दे निराशा।